बीते सात वर्षों में जिन किसानों ने खेती छोड़कर वैकल्पिक रोजगार अपना लिया था, आगामी कुछ महीनों में उनमें से डेढ़ करोड़ किसानों के थक-हारकर अपने गांव लौट आने की संभावना है। सामान्य स्थितियों में इतने बड़े स्तर पर किसानों के शहरों से गांव लौटने को समावेशी विकास का संकेत माना जाता। लेकिन अर्थशास्त्री इस यू-टर्न को आर्थिक मंदी का नतीजा बता रहे हैं। क्रिसिल ने भी अपनी रिपोर्ट में इसे...
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नये साल में आर्थिक व्यूह रचेगा भारत!- पुष्परंजन
भारतीय आइटी उद्योग उत्तर अमेरिका से सरक कर यूरोप की ओर जा रहा है. 2014 में इस तरह की भविष्यवाणी से अमेरिका की भृकुटी तन गयी है. नास्कॉम के अध्यक्ष सोम मित्तल की सुनिये, तो यूरोप भारतीय आउटसोर्सिस सेवा को इस साल अपनी ओर आकर्षित करेगा, जिससे सिर्फ आइटी सेक्टर से 108 अरब डॉलर के लाभ की उम्मीद की जा सकती है. क्या इसके लिए 22 से 25 जनवरी तक दावोस में...
More »मनरेगा पर ज्यादा सरकारी धन खर्च
मनरेगा देश की सबसे बड़ी योजना है, जिस पर केंद्र सरकार 40-42 हजार करोड़ रुपये सालाना खर्च करती है. इसके मकसद के बारे में सभी जानते हैं. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) एक कानून है, जो शासन को इस बात के लिए बाध्य करता है कि वह किसी भी ग्रामीण परिवार के वैसे सदस्यों को एक साल में सौ दिन का रोजगार मुहैया कराये, जो 18 साल...
More »विषमता का विकास और राजनीति- सुरेश पंडित
जनसत्ता 26 दिसंबर, 2013 : जैसे-जैसे सोलहवीं लोकसभा के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ़ रही है। कांग्रेस और भाजपा अपने अधिकतम भौतिक और मानवीय संसाधन झोंक कर इस चुनाव को किसी भी तरह जीत लेने के लिए कटिबद्ध दिखाई दे रही हैं। मतदाताओं को रिझाने के लिए उनके पास विकास के अलावा और कोई खास मुद्दा नहीं है और चूंकि इसे पहले भी कई बार आजमाया...
More »सुप्रीम कोर्ट ने सुनाए समाज और लोकतंत्र को प्रभावित करने वाले फैसले
नई दिल्ली। यह साल न्यायिक संक्रांति के लिए भी याद किया जाएगा। देश की शीर्ष अदालत ने समाज और हमारे लोकतंत्र को प्रभावित करने वाले कई अहम फैसले इस साल सुनाए। जेल में बंद लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधि बनने और दो साल से अधिक की सजा पाने वाले सांसदों-विधायकों को सदन की सदस्यता के अयोग्य करार देने जैसे चुनाव सुधारों पर ऐतिहासिक फैसलों, ‘पिंजरे में बंद’ सीबीआइ की स्वायत्तता की गुहार...
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