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भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अब निर्मला सीतारमण की जरूरत नहीं, मोदी को जयशंकर की तरह लेटरल एंट्री का सहारा लेना चाहिए

-द प्रिंट, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अब जबकि लगातार गिरती अर्थव्यवस्था, अप्रैल-जून तिमाही में भारत की जीडीपी में 23.9 प्रतिशत की उल्लेखनीय गिरावट आई है— पर काबू पाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, उन्हें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की तरफ से किसी और मिसहैंडलिंग की जरूरत नहीं है. मोदी को उनकी बनाई भुरभुरी जमीन से उबरना होगा और लेटरल एंट्री को अर्थव्यवस्था बचाने के लिए अपना मंत्र बनाना होगा....

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क्या उबर पाएगा हिंदुस्तान?

-इंडिया टूडे, अर्थव्यवस्था: विशेषज्ञों की राय पहले से ही संकटों में घिरी भारत की अर्थव्यवस्था को कोविड ने जोरदार झटका दिया है और देश के सामने एक बड़ी मंदी मुंह बाए खड़ी है. इंडिया टुडे के अर्थशास्त्रियों का बोर्ड (बीआइटीई) इस बात का अंदाजा लगा रहा है कि यह कितने दिनों तक चलने वाला है और इस बीमार अर्थव्यवस्था को चंगा करने के लिए उनकी क्या सलाह है   मैत्रीश घटक, प्रोफेसर, लंदन स्कूल...

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कोरोना के कारण गरीबी के चरम स्तर पर पहुंच सकती हैं दुनिया की 4.7 करोड़ महिलाएं: यूएन

-डाउन टू अर्थ, कोविड-19 वैश्विक महामारी और उसके बाद बने सामाजिक और आर्थिक हालात के कारण 2021 तक लगभग 4 करोड़ 70 लाख महिलाएं गरीबी के चरम स्तर का सामना कर सकती हैं। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की संस्था यूएन वूमेन और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा कराए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है। कोविड-19 से पहले वर्ष 2019 से 2021 के बीच महिलाओं में गरीबी दर 2.7 फीसदी घटने...

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महामारी के वक्त कृषि क्षेत्र ने बनाई बढ़त, आर्थिक विकास में उद्योग से ज्यादा हिस्सेदारी

-डाउन टू अर्थ, 31 अगस्त 2020 को जारी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों के तहत कवर किए गए आठ उद्योगों में से केवल कृषि ऐसा क्षेत्र है, जिसमें वित्त वर्ष 2020-21 की अप्रैल-जून की तिमाही में वृद्धि हुई है।  राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा पहली तिमाही (अप्रैल-जून, 2020) के लिए जारी अनुमानों के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 23.9 प्रतिशत की कमी आई है। पिछले साल इसी तिमाही में जीडीपी...

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कॉन्ट्रैक्ट पर खेती करने वाले सौदों में छोटे किसानों को क्यों नुकसान उठाना पड़ता है

-न्यूजक्लिक, अनुबंध (Contract) पर खेती का विस्तार हाल के दशकों में तेजी से बढ़ा है और भारत भी ऐसा लगता है कि अपने हालिया लागू कानूनों, दिशानिर्देशों और नियमों के तहत इस दौड़ में खुद को शामिल करने के लिए तैयार कर रहा है। ठेके या अनुबंध खेती से जुड़े अनुभवों की अगर बात करें तो विकसित देशों के साथ-साथ जिन भी विकासशील देशों में इसे लागू किया गया है, वे...

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