तारीखें कैलेंडर में टंगी चुप्पी साधी चीज नहीं होती हैं, यह तो इतिहास के सबल साजो-सामान और विचार को हमारी आंखों के आगे चस्पा कर उस भार का एहसास दिलाती रहती हैं, जो पूर्वजों के कंधों से होकर हमारे वर्तमान में प्रवेश कर जाती हैं. फर्क इस बात का पड़ता है कि हम यूं ही कैलेंडर के पन्ने पलट देते हैं या उसे पढ़ पाते हैं. ऐसे ही 08 मार्च,...
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शिक्षा, शिक्षक और समाज--- कारुलाल जमड़ा
पिछले दिनों एक समाचार के शीर्षक ने सभी का ध्यान आकर्षित किया- ‘देशमें डेढ़ लाख शिक्षक स्कूल नहीं जाते!' इस समाचार के चलते शिक्षकों की साख पर बट्टा लगा। यह अलग बात है कि कुछ समय पहले, शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिष्ठित एक एनजीओ ने अपनी विस्तृत शोध-रिपोर्ट में इसके ठीक विपरीत स्थिति बयान की थी और शिक्षकों की अनुपस्थिति का कारण उनका शैक्षणिक काम से ही अन्यत्र जाना बताया...
More »भ्रष्ट नौकरशाही पर नकेल का फॉर्मूला - डॉ. भरत झुनझुनवाला
पंजाब नेशनल बैंक में घोटाले से स्पष्ट हो गया कि सरकारी तंत्र के निचले हिस्से में भ्रष्टाचार पहले की तरह फल-फूल रहा है। जानकार बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने ऊंचे स्तर पर तमाम ईमानदार अधिकारियों को नियुक्त किया है। वित्त सचिव और पीएनबी के प्रबंध निदेशक भी ईमानदार ही होंगे, लेकिन क्या उनके नीचे के लोग भी वैसे ही हैं? एक वृत्तांत वर्तमान स्थिति को स्पष्ट करता है। किसी...
More »बराबरी के दंगल में न आएं स्त्रियां--
पिछले दिनों लड़कियों और महिलाओं द्वारा बीयर पीने पर गोवा के मुख्यमंत्री के वक्तव्य पर आयी लड़कियों-महिलाओं की प्रतिक्रियाएं और तस्वीरों के प्रदर्शन अखबारों में देखकर बहुत पुरानी घटना स्मरण हो आयी. साल 1977 की बात है. मैं बिहार से दिल्ली रहने आयी ही थी. मुझसे 7-8 वर्ष पूर्व दिल्ली आयी एक रिश्तेदार महिला से बात हो रही थी. उसने कहा- ‘मेरी तबियत खराब हो गयी थी. दरअसल होली का...
More »बुनियादी ढांचे की बदलती परिभाषा-- नंदन नीलेकणि
अगर बाल्टी में छेद हो, तो इस धरती का पूरा पानी भी उसे कभी नहीं भर सकता। वित्त मंत्री को न सिर्फ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बौद्धिकता को प्रोत्साहित करने के लिए फंड मुहैया करना होगा, बल्कि हाशिये के लोगों को भी देखना होगा। साफ है, हमें अपनी बुनियादी समस्याओं पर भी उतना ही ध्यान देने की जरूरत है, जितना महत्वाकांक्षी बड़ी परियोजनाओं पर। दोनों सिरों को साधना अब कोई...
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