डाउन टू अर्थ, 25 अगस्त जलवायु परिवर्तन इस सदी का एक ऐसा खतरा है जिससे चाह कर भी नहीं बचा जा सकता। मौसम से जुड़ी चरम घटनाएं जैसे भारी बारिश, बाढ़, लम्बे समय तक चलने वाला सूखा ऐसी ही घटनाएं हैं जो तापमान में होती वृद्धि के साथ आम होती जा रहीं हैं। अंदेशा है कि आने वाले दशकों में स्थिति बद से बदतर हो सकती है। ऐसे में सबसे बड़ा...
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गरीबी और असमानता
[inside] इंडिया में आर्थिक असमानता: “अरबपति राज” में ब्रिटिश राज से भी ज्यादा है असमानता - रिपोर्ट [/inside] इंडिया के भौगोलिक आकार और जनसंख्या, जो अब दुनिया में सबसे अधिक है, को देखते हुए इंडिया में आर्थिक विकास का वितरण विश्व की आर्थिक असमानता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। इसलिए इंडिया में आय और संपत्ति की असमानता को सटीक रूप से मापना अत्यधिक आवश्यक है। हाल ही में वर्ल्ड इनइक्वलिटी डाटाबेस ने...
More »बिहार: सुखाड़ के साथ खाद की कमी और कालाबाजारी से जूझ रहे किसान
डाउन टू अर्थ, 24 अगस्त बिहार में लगातार तपिश और कड़ाके की गर्मी से किसान मायूस हैं। मौसम विभाग के अनुसार 17 अगस्त 2022 तक राज्य में केवल 389.8 मिलीमीटर बारिश दर्ज की जो कि सामान्य से बहुत कम है। इस समय तक सामान्य तौर पर 657.6 मिलीमीटर बारिश होती है। इस सुखाड़ से नुकसान झेलने के बाद किसान अब यूरिया और खाद की किल्लत से भारी मुसीबतों का सामना कर रहे...
More »महाराष्ट्र: मराठवाडा में गहराया कृषि संकट, 8 महीने में 600 किसानों ने की आत्महत्या!
गाँव सवेरा, 20 अगस्त आए दिन किसानों की आत्महत्या कि खबर पढ़ने और सुनने को मिलती है. तमाम प्रयासों और कोशिशों के बाद भी किसानों की आत्महत्या की सिलसिला नहीं रुक रहा है. 8 महीने में करीब 600 किसानों ने की आत्महत्या क्या मराठवाडा कृषि संकट का सामना कर रहा है. किसान संगठन में काम करने वाले कार्यकर्ताओं का मानना है कि मौसम की घटनाओं की बजाय किसानों की स्थिति...
More »साधारण खरपतवार नहीं है 'कुल्फा', सूखा और बदलते मौसम से लड़ सकता है यह सुपर प्लांट
डाउन टू अर्थ, 08 अगस्त वैज्ञानिकों की मानें तो यह खरपतवार एक सुपर प्लांट है जो न केवल गर्मी, सूखा बल्कि जलवायु में आते बदलावों का सामना कर सकता है कुल्फा या यह कहें कि एक खरपतवार, एक ऐसा पौधा जो आपको अक्सर कई जगहों पर दिख जाएगा। खेतों में, सड़क किनारे, नालियों के किनारे यह पौधे, खरपतवार के रूप में कहीं भी आसानी से उग जाते हैं। पर इन पौधों...
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