भारतीय समाज में औरतों के खिलाफ जारी, बल्कि बढ़ती हुई हिंसा को लेकर चिंतित और भयभीत होने की कई सारी वजहें हैं। निस्संदेह, यह कोई नया लक्षण नहीं है, क्योंकि ऐसी हिंसा भारतीय समाज में ढांचागत और स्थानीय, दोनों रूपों में हमेशा से मौजूद रही है। हमें इस तरह की दलील भी सुनने को मिलती है कि इन दिनों ऐसी अनेक घटनाएं हमें इसलिए सुनने को मिल रही हैं, क्योंकि...
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यमुना का यह हाल क्यों है-- पंकज चतुर्वेदी
पिछले एक सप्ताह से दिल्ली के अतिविशिष्ट इलाके लुटियन जोन के नल रीते थे, कारण हरियाणा से दिल्ली में प्रवेश कर रही यमुना इतनी जहरीली हो गई थी कि वजीराबाद व चंद्रावल के जल परिशोधन संयंत्र की ताकत उन्हें साफ कर पीने लायक बनाने के काबिल नहीं रह गई थी। वैसे तों दिल्ली भी यमुना को ‘रिवर' से ‘सीवर' बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती, लेकिन इस बार हरियाणा के...
More »आज तो आजिज हैं सब गरीब! - मृण्ााल पांडे
दु:ख, असहायता और राज-समाज के उत्पीड़न से भारतीय गरीबों का इतनी सदियों से रिश्ता रहा है कि वे अक्सर उसे खामोशी से सहते रहते हैं। पर हमारे यहां जनता की अनसुनी मूक व्यथा को स्वर देने वाले जनकवियों की वाल्मीकि से लेकर बाबा नागार्जुन तक एक लंबी परंपरा भी है, जिसमें नज़ीर अकबराबादी भी आते हैं। मध्यकाल में जब दिल्ली की बादशाहत उजड़ रही थी और जनता जाट, रुहेले, मराठा...
More »CSDS सर्वे: यूपी में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के ज्यादा शिकार हुए पढ़े-लिखे हिंदू नौजवान
छह दिसंबर 1992 का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का एक काला दिन है। इसी दिन अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद को कारसेवकों की बेकाबू भीड़ ने गिरा दिया। उस घटना के 24 साल बाद भी उत्तर प्रदेश में कोई भी चुनाव उसके जिक्र के बिना पूरा नहीं होता। बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद यूपी में पूरी एक पीढ़ी जवान हो चुकी है लेकिन ये मुद्दा अभी भी राजनीतिक रूप...
More »प्रदूषण की चपेट में समुद्री जीवन-- अरविन्द कुमार सिंह
हाल ही में ‘नेचर जियोसाइंस' पत्रिका का यह खुलासा चिंतित करने वाला है कि वायु प्रदूषण की वजह से समुद्री जीवन विषैला बन रहा है। यह खुलासा स्पेन के वैज्ञानिकों ने किया है। उनके शोध के मुताबिक जीवाश्म र्इंधन का उपयोग, औद्योगिक कार्बन उत्सर्जन और जंगल की आग समुद्री जीवन को जहरीला बना रहे हैं। इन वैज्ञानिकों का दावा है कि इनसे उत्सर्जित पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन्स (पीएएचएस) नामक घातक रसायन...
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