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देश में फुटबॉल का गढ़ रहे पश्चिम बंगाल में ही पहचान खो रहा यह खेल

-गांव कनेक्शन, आसमान में टिमटिमाते तारों को देखना, उनके बारे में बातें करना और उनसे जुड़ी जानकारियां हासिल करना सबको अच्छा लगता है, लेकिन ज़मीं के छोटे-छोटे कस्बों, गाँव और शहरों के उन सितारों को हम नहीं जान पाते जिनकी अपनी चमक होती है। जो अपने हुनर के दम पर पूरी दुनिया में रोशनी फैलाने का हौसला रखते हैं। ऐसे सितारे जो अपनी रोशनी से देश को गौरान्वित कर सकते हैं।...

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पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी (पीएईजी) सामाजिक समूह ने जारी किया द्वितीय मनरेगा ट्रैकर

-पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी (पीएईजी) द्वारा जारी द्वितीय मनरेगा ट्रैकर (17 अगस्त, 2020 को जारी) राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (नरेगा) कार्यान्वयन ट्रैकर, नरेगा की मांग को लेकर 2005 में 'रोज़गार गारंटी के लिए जन संघर्ष' (पी.ए.ई.जी.) गठित हुआ। यह एक समूह हैं जिसमें विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ता, शैक्षणिक और अनेक जन संगठनों के सदस्य जुड़े हैं. पी.ए.ई.जी. शोध और अधिवक्तृता के माध्यम से नरेगा के कार्यान्वयन को मजबूत करने के लिए चर्चाओं, लोगों द्वारा...

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मातृ मृत्यु के SDG-3 लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हमें दक्षिणी राज्यों से सीखने की आवश्यकता है

मातृ मृत्यु अनुपात पर जारी नए विशेष बुलेटिन से पता चलता है कि साल 2014-16 में भारत का मातृ मृत्यु अनुपात (MMRatio) 130 मातृ मृत्यु प्रति एक लाख जीवित जन्म था जोकि साल 2015-17 में घटकर 122 मातृ मृत्यु प्रति एक लाख जीवित जन्म हो गया, और यह साल 2016-18 के दौरान घटकर 113 मातृ मृत्यु प्रति एक लाख जीवित जन्म रह गया है. सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) के अनुसार, मातृ...

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टीम इंडिया के पूर्व कप्तान एमएस धोनी ने इंटरनेशनल क्रिकेट को कहा अलविदा, रैना ने भी लिया संन्यास

-आउटलुक,  टीम इंडिया के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी अब इंटरनेशनल क्रिकेट में खेलते नहीं आएंगे। दरअसल, शनिवार को उन्होंने इससे संन्यास ले लिया है। इसकी घोषणा धोनी ने सोशल मीडिया के जरिए दी। गौरतलब है कि धोनी टेस्ट क्रिकेट को पहले ही अलविदा कह चुके हैं। मुकेश कुमार के गाए गीत 'मैं पल दो पल का शायर हूं...' को धोनी ने शेयर करते हुए ये बाते कही। उन्होंने अपना आखिरी...

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भारत बीते 50 सालों की सबसे भयावह मानवीय त्रासदी के दौर में प्रवेश कर चुका है

-द वायर, भारत का गरीब और मजदूर वर्ग अब अख़बार के भीतरी पन्नों और टीवी स्क्रीन से गायब हो गया है. ऐसा दिखाने की कोशिश हो रही है कि जब देश में सारी व्यवस्थाएं धीरे-धीरे खुलने लगी हैं और अधिकतर प्रवासी मजदूर अपने गांव लौट गए हैं, तब भूख और रोजी-रोटी की समस्या खत्म हो गई है. जबकि सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है. सच तो सिर्फ इतना है कि अचानक से थोपे गए...

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