नई दिल्ली। यह साल न्यायिक संक्रांति के लिए भी याद किया जाएगा। देश की शीर्ष अदालत ने समाज और हमारे लोकतंत्र को प्रभावित करने वाले कई अहम फैसले इस साल सुनाए। जेल में बंद लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधि बनने और दो साल से अधिक की सजा पाने वाले सांसदों-विधायकों को सदन की सदस्यता के अयोग्य करार देने जैसे चुनाव सुधारों पर ऐतिहासिक फैसलों, ‘पिंजरे में बंद’ सीबीआइ की स्वायत्तता की गुहार...
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दीर्घकालीन राजनीति के तकाजे- पवन कुमार गुप्त
जनसत्ता 23 दिसंबर, 2013 : बहुत समय बाद राजनीति शब्द अपने सही अर्थ के नजदीक आया है। बहुत दिनों बाद आम आदमी में राजनीति से एक उम्मीद जगी है। बहुत-से लोग जो निराशहो गए थे, नए ढंग से सोचने लगे हैं। बात शायद 1944 की है। डॉ सुशीला नैयर ने गांधीजी से पूछा था कि आपने ऐसा क्या किया कि हिंदुस्तान की गिरी-पड़ी जनता उठ खड़ी हुई? गांधीजी का जवाब...
More »यूपी में किसान वोटों के लिए गर्म हुई सियासत
लखनऊ:लोकसभा चुनावों को नजदीकी आता देख यूपी के सभी राजनीतिक दल किसानों के हितैषी बनने में जुट गए हैं. अपने-अपने तरीके से काग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा), राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) तथा समाजवादी पार्टी (सपा) अब किसानों को एक बड़ा वोटबैंक मानकर उनकी समस्याओं को उठाने लगे हैं. इसीक्रम में कांग्रेस, बसपा, रालोद तथा भाजपा में किसान दिवस मनाने की होड़ लग गई है. इसके लिए इन दलों...
More »महंगाई के मोरचे पर चेतने का वक्त
महंगाई के मोरचे से आ रही खबरों को देखते हुए लगता नहीं कि निकट भविष्य में इसकी मार से छुटकारा मिलेगा. ताजा आंकड़ों के मुताबिक खाद्य-पदार्थो, विशेषकर सब्जियों, की कीमतों में खासी तेजी आयी है. इससे थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति नवंबर में बीते 14 माह की रिकॉर्ड ऊंचाई पर रही. सब्जियों की महंगाई का आलम यह है कि अक्तूबर से नवंबर के बीच कीमतों में तकरीबन 17 फीसदी का...
More »खुदरा महंगाई ने फिर बरपाया कहर
केंद्र सरकार महंगाई और औद्योगिक मोर्चे पर मुश्किल में घिरती दिख रही है। नवंबर में खुदरा महंगाई इस साल सबसे ज्यादा 11.24 फीसदी तक पहुंच गई है, जबकि औद्योगिक उत्पादन 1.8 फीसदी गिर गया है। महंगाई जहां आम आदमी की कमर तोड़ रही है वहीं, उद्योग सुस्ती के भंवर में फंस चुके हैं। खाने-पीने की चीजों पर 14.72 फीसदी तक पहुंची महंगाई आम जनता के साथ सरकार पर भी भारी पड़...
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