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लॉकडाउन में न्यायापालिका

-न्यूजक्लिक, सुप्रीम कोर्ट ने हाल में स्वत: संज्ञान लेते हुए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के ट्वीट्स पर ‘कोर्ट की अवमानना’ की प्रक्रिया शुरू कर दी। कहा जा रहा है कि उनके एक ट्वीट में भारत के मुख्य न्यायधीश पर महामारी के दौर में न्याय व्यवस्था को लॉकडाउन में रखने से संबंधित टिप्पणी की गई थी। यहां लेखक महामारी में बतौर जरूरी सेवा, न्यायिक प्रक्रियाओं को जारी रखने में सुप्रीम कोर्ट के...

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कोविड से जूझ रहे सरकारी अस्पतालों के बीच निजी क्षेत्र पर शिफ्ट हुआ ‘मोदीकेयर’ बिजनेस

-द प्रिंट, दो महीने की अनलॉकिंग के बाद ज़्यादातर राज्यों में, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जे) का इस्तेमाल, लॉकडाउन से पहले के स्तर पर आ गया है. लेकिन इसमें एक पेंच है. सरकारी सुविधाओं के कोविड केयर में फंसे होने के कारण, ज़्यादातर राज्यों में पीएम-जे क्लेम्स में निजी अस्पतालों की हिस्सेदारी काफी बढ़ गई है. पीएम-जे सरकार की एक प्रमुख स्वास्थ्य बीमा स्कीम है. ये आयुष्मान भारत का हिस्सा है जिसमें...

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क्यों रफाल सौदे पर उठने वाले सवालों को सिर्फ विपक्ष की राजनीति बता देना सही नहीं है

-सत्याग्रह, अक्टूबर 1953 में फ्रांस से चार लड़ाकू विमानों ने भारत के लिए उड़ान भरी थी. इन्हें बनाने वाली कंपनी ने इनका नाम ऊरागां रखा था जिसका हिंदी में अर्थ होता है तूफान. इन विमानों को भारतीय वायु सेना में शामिल होना था. एक पखवाड़े का सफर तय करते हुए चारों विमान भारत पहुंच गए. भारतीय वायु सेना ने इन्हें नाम दिया - तूफानी. 67 साल बाद बीते दिनों यह कहानी कमोबेश...

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असम में पर्यावरण प्रभाव आकलन मसौदे (EIA 2020) का विरोध, बाघजान और डेहिंग पटकई से सीख लेने की अपील

-गांव कनेक्शन, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी ड्राफ्टविवादित पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना (ईआईए,2020) को एंटी-नॉर्थइस्ट (पूर्वोत्तर विरोधी) कहा जा रहा है। वैसे तो ईआईए में संशोधित प्रस्तावाओं का देशभर में विरोध हो रहा है, लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों के लिए ईआईए के अपने निहितार्थ है। असम और ड्राफ्ट ईआईए 2020 1984 भोपाल गैस त्रासदी के बाद 1986 में पहली बार भारत में पर्यावरण संरक्षण कानून बनाया गया था। इसी कानून के तहत...

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प्रेमचंद 140 : जीवन के प्रति दहकती आस्था

-सत्यहिंदी, प्रेमचंद को लेकर साहित्यवालों में कई बार दुविधा देखी जाती है। उनका साहित्य प्रासंगिक तो है लेकिन क्यों? क्या ‘गोदान’ इसलिए प्रासंगिक है कि भारत में अब तक किसान आत्महत्या कर रहे हैं? या दलितों पर अत्याचार अभी भी जारी है, इसलिए ‘सद्गति’ और ‘ठाकुर का कुआँ’ प्रासंगिक है? क्या ‘रंगभूमि’ इसलिए पढ़ने योग्य बनी हुई है कि किसानों की ज़मीन कारखाने बनाने के लिए या ‘विकास’ के लिए अभी...

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