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विकास : मिथक या सच्चाई- इर्शादुल हक(तहलका हिन्दी)

  बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का दावा है कि राज्य की विकास दर इस वर्ष 14.15 प्रतिशत तक पहुंच गई है जो देश में सबसे ज्यादा है. अर्थशास्त्रियों का दावा है कि इसमें सच्चाई से ज्यादा आंकड़ेबाजी है. इर्शादुल हक की रिपोर्ट   16 अक्टूबर को उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के केंद्रीय सांख्यिकी संगठन यानी सीएसओ के हवाले से प्रेस को सूचना दी, ‘2010-11...

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फर्जी आंकड़ों का झुनझुना थमा रहे नीतीश : दीपंकर

पटना। बिहार में विकास के आंकड़े को चुनौती दे रहे भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने मुख्यमंत्री पर एक बार फिर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि नीतीश जनता को फर्जी आंकड़ों का झुनझुना पकड़ा रहे हैं। बिहार के युवाओं और मजदूरों का पलायन नहीं रुका है। पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में मंगलवार को दीपंकर खेत मजदूर सभा के चौथे राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि न तो...

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अन्न स्वराज- वंदना शिवा

भोजन का अधिकार जीने के अधिकार से जुड़ा हुआ है और संविधान का अनुच्छेद 21 सभी नागरिकों को जीने का अधिकार प्रदान करता है। इस लिहाज से प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक स्वागतयोग्य है। पिछले दो दशकों में भारत में भूख एक बड़ी समस्या के रूप में उभरी है। 1991 में जब आर्थिक सुधार कार्यक्रम शुरू किए गए थे, तब प्रति व्यक्ति भोजन की खपत 178 किलोग्राम थी, जो 2003 में...

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ये है देश का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला शहर

वाणिज्यिक राजधानी मुम्बई 1.84 करोड़ लोगों के साथ देश का सर्वाधिक जनसंख्या वाला शहर है। 2011 की जनगणना के प्रारम्भिक आंकड़ों के अनुसार 1.63 करोड़ जनसंख्या के साथ दिल्ली दूसरे और 1.41 करोड़ की जनसंख्या के साथ कोलकाता सूची में तीसरे स्थान पर हैं। शहरी संकुलन के मामले में दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की जनसंख्या 2.17 करोड़ के साथ सर्वाधिक है। एनसीआर में दिल्ली के अलावा गुड़गांव, फरीदाबाद, नोएडा और...

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महाशक्ति बनने की सही राह - सीताराम येचुरी

द इकोनॉमिस्ट ने भारत पर एक कवर स्टोरी की है। इसी अंक में ‘बिजनेस इन इंडिया’ पर पूरे 34 पृष्ठ की एक विशेष रिपोर्ट है। यह रिपोर्ट भारत के संबंध में कहती है कि, ‘यह एक उभरती हुई महाशक्ति है, जिसके समाज में जोश है, जिसकी फर्मो के चेहरे पर खून की लाली है और जो विश्व मंच पर चढ़ रही हैं।’ यह वास्तव में विश्व पूंजीवाद की इस इच्छा...

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