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खुला बाजार और बंद दिमाग- कुमार प्रशांत

जनसत्ता 11 दिसंबर, 2012: लंबे समय से देश के किसी भी गहरे सवाल पर, कोई भी सार्थक बहस करने में असमर्थ लोकसभा-राज्यसभा के सदस्यों के बीच दो दिन की भाषणबाजी के बाद यह फैसला हो गया कि भारत का खुदरा बाजार विदेशी पूंजी और विदेशी माल के लिए खोल दिया जाएगा। अरविंद केजरीवाल पूछते हैं कि भाई, जो खुदरा बाजार में अपना माल लेकर बैठता है और जो खरामां-खरामां उससे खरीदारी करने...

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हमारे लोकतंत्र का संकट- शिवदयाल

जनसत्ता 16 अक्टुबर, 2012: दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, सवा अरब लोगों का। छह-सात प्रतिशत की दर से बढ़ती अर्थव्यवस्था। पर इसकी अधिकांश आबादी को अब तक ‘ट्रिकल डाउन’ यानी अमीरों के उपभोग से रिस कर मिलने वाले लाभ का ही आसरा है। छीजते जाते संसाधन, बिगड़ता जाता पर्यावरण, जलावतनी और विस्थापन, एक-दूसरे को काटती और खारिज करती पहचानें, लगभग एक-तिहाई से भी अधिक भूभाग सैन्यबलों के भरोसे, और इतने पर भी धन...

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पीड़ा में पहाड़िया- निराला की रिपोर्ट

झारखंड से लेकर बिहार, मध्य प्रदेश और उड़ीसा तक फैले पहाड़िया समुदाय के लिए जिंदगी उतनी ही दुश्वार है जितनी सदियों पहले थी. धरती के सबसे पुराने बाशिंदे कहे जाने वाले इन लोगों की फरियाद सुनने वाला कोई नहीं. निराला की रिपोर्ट. हम झारखंड के सुंदरपहाड़ी इलाके के पहाड़ों पर हैं. चेबो नाम के एक गांव में, जिस तक उजले भारत की कोई चमक अब तक नहीं पहुंची है, हां, शोषण जरूर उन...

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पंचायत का तालिबानी फैसला, विधवा को मारे गए जूते

फिर एक महिला पंचायत के तालिबानी फैसले का शिकार हो गई। लगभग तीन सौ लोगों के सामने विधवा को अपमानित किया गया। पंचायत सदस्यों ने महिला के चरित्र पर सवाल खड़े करते हुए उसे जूते मारे। महिला का आरोप है कि दबंगों ने न सिर्फ उसके साथ मारपीट की बल्कि उसे बचाने आए उसके 12 साल के बेटे को भी नहीं बख्शा। पथरी थाना क्षेत्र की एक बस्ती में रहने वाली...

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अगवा बचपन, बंधुआ बचपन- प्रियंका दुबे की रिपोर्ट(तहलका)

क्या हम जो खा रहे हैं उसे दिल्ली से अगवा बच्चे आस-पास के इलाकों में बंधुआ मजदूर बनकर उगा रहे हैं? प्रियंका दुबे की रिपोर्ट.    दिल्ली में जहांगीरपुरी की एक झुग्गी बस्ती में रहने वाला 14 साल का महेंद्र सिंह सात अगस्त, 2008 की सुबह रोज की तरह घर से शौच के लिए निकला था. इसके बाद उसका कुछ पता नहीं चला. घरवालों ने उसे तलाशने की न जाने...

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