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कृषि क्षेत्र के विकास के लिए बजट से 5 बड़ी उम्मीदें- विजय सरदाना

देश के हर नागरिक को खाद्य सुरक्षा देने के लिए खाद्यान्‍यों की बर्बादी रोकना और उत्पादन को बढ़ावा देना काफी महत्‍वपूर्ण है। इस दिशा में ठोस पहल कर सरकार खाद्य महंगाई को काबू में करने के साथ-साथ चालू खाता घाटे को भी नियंत्रित कर सकती है। इसके अलावा, ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था को भी रफ्तार दी सकती है। हालांकि, यह बात भी सही है कि केंद्र सरकार किसानों और निजी क्षेत्र को...

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100 वर्षों से लग रहा ऐसा हाट जहां नहीं होता भाव-ताव

डॉ. रमेश राठौर/शिवशंकर रोकड़े, नांद्रा। मध्‍यप्रदेश के खरगोन जिले के गांव नांद्रा में हर सोमवार को अनूठे तरीके से हाट का आयोजन होता है। सुबह 7 बजे से बाजार सज जाता है। ग्रामीण खरीदारी के लिए पहुंचते हैं और सुबह 10 बजे ही व्यापारी अपना पूरा व्यवसाय कर दुकानें समेट लेते हैं। इस तरह के हाट आयोजन से जहां ग्रामीण भी खरीदारी कर अपने रोजमर्रा के कामकाज में जुट जाते...

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जंगल से सीखें कुपोषण का इलाज- प्रताप सोमवंशी

ओडिशा देश के पिछड़े राज्यों में से एक है। इस राज्य के आदिवासी इलाके अकाल, भुखमरी, कुपोषण के विशेषण को अपनी पहचान के साथ ढोते रहते हैं। इन्हीं आदिवासी इलाकों का एक दूसरा सच भी जान लीजिए- लिविंग फार्म की ओर से दो जिलों के छह गांवों की एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक यहां खाने-पीने की 121 चीजें पाई जाती हैं। इनमें 30 किस्म के मशरूम, जिसे स्थानीय बोली में...

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बढ़ रही है कर्जदार किसानों की तादाद- एनएसएसओ

विकास के बहुमुखी हल्ले के बीच कृषि-संकट जारी है। तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र से रह-रह कर आ रही किसान-आत्महत्याओं की खबरों के बीच राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण(एनएसएसओ) द्वारा इस माह जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 52 फीसदी खेतिहर परिवार कर्ज में डूबे हैं। रिपोर्ट में का यह तथ्य जुलाई 2012 से जून 2013 के बीच की स्थिति के बारे में है।(देखें नीचे दी गई लिंक) तकरीबन साढ़े...

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रोजगारविहीन विकास की कहानी - देविन्दर शर्मा

भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के लिए प्राइसवाटर हाउस नामक परामर्शी कंपनी द्वारा तैयार एक ताजा रिपोर्ट में रोजगार निर्माण के लिए आर्थिक विकास को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार, यदि भारत की वार्षिक विकास दर नौ फीसदी रहती है, तो देश से बेरोजगारी खत्म करने में 20 वर्ष लगेंगे। यह वास्तव में वही है, जो हमें हाई स्कूल की अर्थशास्त्र की किताबों में पढ़ाया...

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