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टिकाऊ विकास की उर्जा-- रमेश सर्राफ धमोरा

भारत में हर साल चौदह दिसंबर को राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाया जाता है। भारत सरकार ने वर्ष 2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम लागू किया था। इस अधिनियम में ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों को इस्तेमाल में लाने के लिए बड़े पैमाने पर तैयारी करना, पारंपरिक स्रोतों के संरक्षण के लिए नियम बनाना आदि शामिल था। भारत में राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाने का मकसद लोगों को ऊर्जा के महत्त्व के...

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देश की नदियों को बचाने की एक नई उम्मीद-- ज्ञानेन्द्र रावत

बीते दिनों देश की सर्वोच्च अदालत ने महाराष्ट्र की दो नदियों उल्हास और वलधूनी में प्रदूषण करने के लिए राज्य सरकार पर 100 करोड़ रुपये का भारी जुर्माना लगाया है। अदालत ने कहा कि जुर्माने की इस राशि से इन दोनों प्रदूषित नदियों को फिर से उनके मूल स्वरूप में लौटाया जाएगा। वैसे 2015 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी एनजीटी ने महाराष्ट्र की इन दोनों नदियों में भारी प्रदूषण करने...

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बुनियादी ढांचा सुधरने से थमेंगी कीमतें-- रमेश कुमार दुबे

बंपर उत्पादन और तमाम सरकारी उपायों के बावजूद महंगाई दर में बढ़ोतरी से साबित होता है कि वितरण के मोर्चे पर अभी बहुत कुछ करना है। पिछले साढ़े तीन वर्षों में मोदी सरकार ने ग्रामीण सड़कों, सिंचाई, फसल बीमा और बिजली आपूर्ति के क्षेत्र में अहम सुधार किया है लेकिन भंडारण-विपणन ढांचे में सुधार अभी भी दूर की कौड़ी बना हुआ है। यही कारण है कि कुछ महीने पहले तक...

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कामयाब रहा नोटबंदी का मकसद - अरुण जेटली

भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में 8 नवंबर, 2016 का दिन बेहद निर्णायक माना जाएगा। यह दिन इस सरकार द्वारा काले धन पर प्रहार की याद दिलाता है। देश की जनता भ्रष्टाचार और काले धन को लेकर 'चलता है वाले रवैये को झेलने पर मजबूर थी और इसकी सबसे ज्यादा मार मध्यवर्ग और समाज के निचले तबके को झेलनी पड़ती थी। यह जनता की लंबे अरसे से आकांक्षा थी कि भ्रष्टाचार...

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एक सड़क के लिए जब 300 लोग बन गए 'मांझी'

बिहार के दशरथ मांझी तो याद ही होंगे आपको, जिन्होंने पहाड़ तोड़कर सड़क बना दी थी. कुछ इससे मिलता-जुलता झारखंड में भी हुआ है. वह अलसायी-सी सुबह थी. लातेहार के शहरी इलाक़े में रहने वाले लोग अभी जगे भी नहीं थे. तभी रांची-लातेहार हाइवे से सटे केंद्रीय विद्यालय के पास ट्रैक्टर पर सवार कुछ लोग पहुंचे. फिर दूसरा ट्रैक्टर आया, फिर तीसरा, चौथा और यह गिनती बढ़ती चली गई. देखते ही देखते...

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