रायपुर.शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) राजधानी में ही ध्वस्त हो गया। पूरी ताकत झोंकने के बावजूद शिक्षा विभाग छोटे-मोटे स्कूलों में ही गरीब बच्चों का दाखिला करवा सका। बड़े प्राइवेट स्कूलों ने कानून की धज्जियां उड़ाते हुए प्रवेश देना तो दूर खाली सीटों की जानकारी तक नहीं दी। सरकारी नोटिस को कूड़ेदान में फेंक दिया। अब कलेक्टर ने कानूनी कार्रवाई करने के लिए नोटिस जारी की है। नोटिस के माध्यम से निजी...
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भारतीय लोकतंत्र के नाजी पहरुए- तहलका
अररिया में 10 महीने के बच्चे और गर्भवती महिला समेत चार लोगों की मौत को पुलिस आत्मरक्षा की कार्रवाई बता कर जायज ठहरा रही है. लेकिन निरीह घायलों के शरीर पर पुलिसवालों की निर्मम कूद-फांद को कैसे उचित ठहराया जा सकता है? इस मामले में नीतीश कुमार की चुप्पी भी कई सवालों को जन्म देती है. निराला की रिपोर्ट घायल मुस्तफा के शरीर पर एक पुलिसवाला जब लांग जंप, हाई जंप...
More »असंतोष से सुधारों की ओर : डॉ महेश रंगाराजन
सिविल सोसायटी और यूपीए सरकार के बीच लोकपाल बिल पर चला आ रहा गतिरोध एक तरह से समाप्त हो गया है। दोनों पक्ष अपनी-अपनी असहमतियों पर सहमत हैं। दोनों ही जल्द से जल्द लोकपाल चाहते हैं, लेकिन नई व्यवस्था बनाने की प्रक्रियाओं के बारे में वे एकमत नहीं हो सकते। हकीकत यह है कि दोनों ही पक्ष मानते हैं कि वे लड़ाई जीत चुके हैं। बाबा रामदेव ने अपने आंदोलन के...
More »वैकल्पिक राजनीति की तलाश!- योगेन्द्र यादव
हमें राजनीति में विकल्प चाहिए, राजनीति के विकल्प चाहिए या फ़िर वैकल्पिक राजनीति चाहिए? अन्ना हजारे और बाबा रामदेव प्रकरण ने यह सवाल देश के सामने खड़ा कर दिया है. इसका उत्तर न तो रामदेव के पास था, न अन्ना हजारे के पास लगता है. इस गहरे सवाल का जवाब खुद अपने भीतर खंगालने से ही मिलेगा. यह सवाल उठता ही नहीं अगर भ्रष्टाचार के सवाल पर सरकार की साख बची होती. ईमानदार...
More »मेहनतकश की मजदूरी का सवाल : हर्ष मंदर
‘खेतों और फैक्टरियों में काम करने वाले हर मजदूर और कामगार को कम से कम इतना अधिकार तो है ही कि वह इतनी मजदूरी पाए कि अपना जीवन सुख-सुविधा से बिता सके..।’ वर्ष 1929 के लाहौर अधिवेशन में अध्यक्षीय भाषण दे रहे जवाहरलाल नेहरू ने यह बात कही थी। इसके नौ दशक बाद स्वतंत्र भारत की केंद्र सरकार ने कहा कि लोककार्य के लिए कानून द्वारा स्थापित न्यूनतम मजदूरी का भुगतान...
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