लॉर्ड मेघनाद देसाई भारतीय मूल के ब्रिटिश अर्थशास्त्री और लेबर पार्टी से जुड़े राजनीतिज्ञ हैं. वह अर्थशास्त्र के विश्वविख्यात संस्थान, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर रह चुके हैं. उन्होंने कई किताबें लिखी हैं. उनके 200 से ज्यादा लेख अकादमिक जर्नलों में प्रकाशित हो चुके हैं. वह कई भारतीय व ब्रिटिश अखबारों के लिए नियमित स्तंभ लिखते हैं. 5 सितंबर 2014 को उन्होंने पटना स्थित एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (आद्री) में...
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आरटीआइ के तहत सूचना मांगने की वजह बताएं: मद्रास हाई कोर्ट
नई दिल्ली। सूचना का अधिकार कानून (आरटीआइ) पर दूरगामी असर डालने वाले एक फैसले में मद्रास हाई कोर्ट ने कहा है कि आरटीआइ आवेदकों को सूचना मांगने की वजह बतानी चाहिए। साथ ही उसने एक प्रमुख मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के खिलाफ शिकायत पर पंजीयन कार्यालय को फाइल नोटिंग उजागर करने से भी छूट दे दी है। जस्टिस एन पॉल वसंतकुमार और के रविचंद्रबाबू के खंडपीठ ने कहा कि किसी भी आवेदक को...
More »भारत में भूखों की संख्या घटी, पाक में बढ़ी
नयी दिल्ली : भूख की मार झेल रहे लोगों की संख्या भारत में 9.5 प्रतिशत घट कर 19.07 करोड़ पर आ गयी, जो दो दशक पहले 21.08 करोड़ थी. वहीं, पड़ोसी देश पाकिस्तान में ऐसे लोगों की संख्या इस अवधि में 38 प्रतिशत तक बढ़ गयी है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है. हालांकि दक्षिण एशिया में सबसे अधिक भूखे लोगों के मामले में भारत (19.07 करोड)...
More »‘हिंदी प्रदेश’ की पहचान के मायने- शैबाल गुप्ता
शैबाल गुप्ता जाने-माने अर्थशास्त्री और एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (आद्री) के सदस्य सचिव हैं. पिछले दिनों इलाहाबाद स्थित गोविंद बल्लभ पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट ने उन्हें 29वें ‘गोविंद बल्लभ पंत मेमोरियल लेक्चर' में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया था. इस अवसर पर बोलने के लिए उन्होंने जो विषय चुना, उसका शीर्षक था- ‘आइडिया ऑफ द हिंदी हार्टलैंड'. हिंदी में इसे ‘हिंदी प्रदेश की धारणा' कहा जा सकता है. इस...
More »अमेरिका में एक करोड़ की आबादी प्रतिदिन दो डॉलर से भी कम में जीने को मजबूर
वॉशिंगटन। भारत की 80 फीसदी आबादी के बारे में अक्सर कहा जाता है कि ये लोग प्रतिदिन दो डॉलर से भी कम में जीवन यापन करते हैं। लेकिन अब ऐसी ही खबर अमेरिका से भी आने लगी हैं। यहां एक करोड़ लोग प्रतिदिन दो डॉलर में यानी 120 रुपए के खर्च के साथ जीते हैं। ऐसे लोग फूड स्टाम्प, सामाजिक कल्याण और स्कूलों में दिए जाने वाले मुफ्त भोजन पर...
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