'मरते हैं आरजू में मरने की/मौत आती है पर नहीं आती।" 7 मार्च 2011 को अरुणा रामचंद्र शानबाग बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य के मुकदमे का फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने मिर्जा गालिब के इस शे"र को याद किया था। सोमवार को जब अरुणा ने आखिरी सांस ली, तब काटजू ने एक बार फिर यह शे"र दोहराया। इस दर्दनाक कहानी की शुरुआत 26 नवंबर 1973 को होती...
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सकारात्मक बदलाव का पहला साल - संजय गुप्त
नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और एक कुशल प्रशासक की उनकी छवि के बल पर भाजपा ने पिछले वर्ष आम चुनाव में अप्रत्याशित रूप से अकेले बहुमत हासिल किया था। अब जब मोदी सरकार अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा करने वाली है, तब उसके कामकाज को कसौटी पर परखा जाना स्वाभाविक है। मोदी सरकार के बारे में एक बात बिना किसी संदेह के कही जा सकती है कि उसने निराशा...
More »'स्मार्ट' शहरों से हम क्या समझें? - अनुराग चतुर्वेदी
इन दिनों 'स्मार्ट" शब्द का खासा हल्ला मचा हुआ है। देखते-देखते 'स्मार्टफोन" पूरे भारत में छा गए। फोन की तकनीकों ने पूरा नजारा, पूरा बिजनेस ही बदल डाला। अब 'स्मार्ट सिटी" की बातें कही जा रही हैं। 100 स्मार्ट सिटी के मार्फत भारत के शहरों का नक्शा बदलने की तैयारी की जा रही है। मौजूदा वित्त वर्ष स्मार्ट सिटी क्रांति की शुरुआत का वर्ष होगा। देश में इस साल 20...
More »मुसीबतों के फंदे में उलझा किसान - संजय गुप्त
बीते बुधवार को दिल्ली में जंतर-मंतर पर आम आदमी पार्टी की किसान रैली के दौरान राजस्थान के किसान गजेंद्र सिंह की जिस ढंग से मौत हुई, उसने न केवल लोगों को झकझोरा, बल्कि दशकों पुरानी किसानों की समस्याओं को एक बार फिर सतह पर ला दिया। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत 'आप" के अन्य बड़े नेताओं की उपस्थिति में गजेंद्र पहले एक पेड़ पर चढ़े और फिर उन्होंने अपने गले में...
More »आरक्षण का आधार- संपादकीय(जनसत्ता)
सर्वोच्च न्यायालय ने जाट समुदाय को केंद्रीय सेवाओं और शैक्षणिक संस्थानों में पिछड़े वर्ग के तहत दिए गए आरक्षण की अधिसूचना रद्द कर दी। न्यायालय का यह फैसला राजनीतिक दलों के लिए एक सबक है, जो सियासी गरज से आरक्षण की नई-नई मांगों को हवा देते रहते हैं। इस क्रम में वे कई बार यह देखना भी गवारा नहीं करते कि कोई समुदाय आरक्षण का हकदार है या नहीं। जाटों...
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