गगन कोहली, राजौरी। यह कोई सर्कस का सीन नहीं है और न ही कोई स्पाइडर मैन करतब दिखा रहा है। हकीकत जानकर आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी। भविष्य संवारने के लिए ये बच्चे तमाम आफत झेलकर एक लोहे के तार के सहारे उफनती दरिया पार कर स्कूल और कॉलेज जाते हैं। ऐसा नहीं है कि प्रशासन को इसकी जानकारी नहीं है पर वह शायद किसी बड़ी अनहोनी का इंतजार कर...
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दो गायें रखने के लिए भी अब लेना होगा लाइसेंस
पटना : राजधानी में 24 नवंबर के बाद बिना लाइसेंस के खटाल नहीं रह पायेंगे. पटना हाइकोर्ट ने नगर निगम को हर हाल में ऐसे खटालों को शहर से हटाने का निर्देश दिया है. निजी उपयोग के लिए दो गाय रखनेवालों को भी नगर निगम से अनुमति लेनी होगी. बिना अनुमति और लाइसेंस के खटाल या गाय रखनेवालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जायेगी. कोर्ट ने इसके लिए 24 नवंबर...
More »बच्चों की फीस के लिए पिता ने घर बेचा
सहरसा: अंगद का सपना था कि बच्चियों को पढ़ा-लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा करें. इस दौरान जब पैसे की दिक्कत आयी तो उन्होंने पैतृक घर भी बेच डाला. बच्चियां भी पिता की अपेक्षा पर खरा उतरीं लेकिन महंगाई के इस दौड़ में अंगद का यह सपना पूरा नहीं हो पा रहा है. घर बेचने के बाद जो पैसे आये, उससे बेटियों का नामांकन तो कराया लेकिन अब फाइनल परीक्षा...
More »कहां है कबीर अंत्येष्टि योजना : सुकनी देवी को नहीं मिल सका कफन
बंदरा (मुजफ्फरपुर): रामपुरदयाल गांव की महादलित सुकनी देवी को दो गज कफन भी नसीब नहीं हुआ. बिना कफन ही उसे गड्ढा खोद कर दफना दिया गया. कफन के लिए सुकनी की बहू लीला देवी ने उन सभी लोगों का 24 घंटे तक चक्कर लगाया, जिनसे मदद की उम्मीद थी. इनमें मुखिया फेंकूराम से लेकर बीडीओ पूजा कुमारी तक शामिल हैं. मुखिया ने यह कहते हुए कबीर अंत्येष्टि योजना की रकम देने...
More »जानिए कैसे काम करती है कैलाश सत्यार्थी की संस्था 'बचपन बचाओ आंदोलन'
बचपन बचाओ आंदोलन ' (बीबीए) नामक एनजीओ चलाने वाले कैलाश सत्यार्थी को शांति का नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद जरूरी हो जाता है कि सिर्फ पुरस्कार की ही चर्चा ना की जाए बल्कि उनके संघर्ष और कामों पर भी चर्चा की जाए. 1954 में जन्मे सत्यार्थी से जब पूछा गया कि आपको यह पुरस्कार मिलने के बाद कैसा लग रहा है तो उनका सीधा सा जबाव था जैसा आप लोगों को...
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