कोडरमा जिले के मरकच्चो प्रखंड के सिमरकुंडी गांव की चर्चा न केवल अपने जिले एवं राज्य की राजधानी रांची बल्कि दिल्ली में भी है. इसकी वजह है गांव में आया जबर्दस्त सामाजिक एवं आर्थिक बदलाव. यह गांव कोडरमा-गिरीडीह मुख्य पथ पर बरियाडीह से सात किलोमीटर दूर स्थित है. गांव में 40 परिवार वास करते हैं. इसमें 20 संथाल, 17 घटवार एवं तीन रवानी जाति के हैं. 2007 से पहले इस गांव...
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एक तिहाई से अधिक महिलायें घरेलू हिंसा की शिकार- रिपोर्ट
न्यूयॉर्क। दुनिया भर में एक तिहाई से अधिक महिलाएं शारीरिक अथवा यौन हिंसा की शिकार हैं तथा महिला विरोधी हिंसा की समस्या ‘महामारी के स्तर' पर पहुंच चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन :डब्ल्यूएचओ: ने ‘लंदन स्कूल आॅफ हाइजिन एंड ट्रापिकल मेडिसीन' तथा ‘साउथ अफ्रीका मेडिकल रिसर्च काउंसिल' के साथ मिलकर जो अध्ययन किया है, उसमें यह बात सामने आई है। इस अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि शारीरिक एवं यौन हिंसा...
More »सूचना अधिकार की नजर- कनक तिवारी
जनसत्ता 17 जून, 2013: केंद्रीय सूचना आयोग के ताजा निर्णय के कारण राजनीतिक पार्टियों में खलबली मच गई है। आयोग का फैसला राजनीतिक पार्टियों की पीठ पर कोड़ा मारता दिखा, लेकिन उसे दलों ने पेट पर लात मारने की शक्ल में माना और अपनी जगहंसाई कराई। आयोग के सामने प्रश्न था कि क्या सूचनाधिकार अधिनियम की धारा 2 (ज) के अनुसार राजनीतिक दलों को लोक प्राधिकारी (पब्लिक अथॉरिटी) माना जा...
More »श्रम में खोता बचपन
बाल श्रम हमारे समय की एक दुखद सच्चई है. तरक्की के तमाम दावों के बावजूद आज हम उद्योग-धंधों से लेकर घर के भीतर तक पूरी दुनिया में किसी न किसी रूप में बाल श्रमिकों को देख सकते हैं. इसकी रोकथाम के लिए बेशक कई कानूनी प्रावधान किये गये हों, लेकिन पिछड़े क्या विकसित कहे जाने वाले समाजों तक में लाखों बच्चों का बचपन पेट की भूख मिटाने में दफन हो जाता है. वर्ल्ड...
More »गुजरात मॉडल में दलित- सुभाष गाताडे
जनसत्ता 5 जून, 2013: दलितों के अधिकारों की जानकारी हासिल करने के लिए सूचनाधिकार के तहत डाले गए आवेदन पर जानकारी मिलने में कितना वक्त लगता है? यों तो नियत समय में जानकारी मिल जानी चाहिए, मगर आप गुजरात जाएं तो वहां कम से कम तीन साल का वक्त जरूर लग सकता है और वह भी तब जब आप सूचना हासिल करने के लिए राज्य के सूचना आयोग के आयुक्त...
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