विकट कृषि संकट के चलते किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसे में हमें इस समस्या पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। किसानों के लिए किसी भी तरह के सुरक्षा तंत्र की रूपरेखा उनकी जरूरतों और समस्याओं की समझ पर आधारित होनी चाहिए। ऐसे किसी तंत्र के लिए विभिन्न पहलुओं पर गौर करना जरूरी है। इसमें से पहला यह कि छोटी जोत की खेती के लिए बड़े पैमाने पर...
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महिला कामगारों की अनसुनी चीख- उपासना बेहार
घरेलू महिला कामगार श्रमिकों का एक ऐसा वर्ग है, जिसका शोषण आज भी जारी है। कहने को भले ही ये कामगार हों, लेकिन इन्हें नौकरानी ही माना जाता है। इनमें से कुछ अनेक घरों में कार्य करती हैं, तो कुछ एक ही घर में सीमित समय के लिए काम करती हैं, जबकि कुछ एक घर में पूर्णकालिक काम करती हैं। इन घरेलू महिला कामगारों के साथ तरह-तरह की क्रूरता, अत्याचार...
More »न बदलें महिला हितैषी कानून- सुभाषिनी अली सहगल
कभी-कभी बड़ी सुर्खियों के पीछे महत्वपूर्ण खबरें छिप जाती हैं। कुछ दिन पहले एक खबर छपी थी कि मोदी सरकार के मंत्रिमंडल ने यह फैसला लिया है कि फौजदारी कानून की धारा 498-ए के तहत दर्ज की गई एफआईआर के आधार पर आरोपी या आरोपियों को गिरफ्तार न करके यह कोशिश की जाएगी कि दोनों पक्षों के बीच समझौता किया जाए। इसके पीछे तर्क यह दिया गया है कि इस...
More »बैंकों की दशा सुधारने की कवायद- धर्मेंन्द्रपाल सिंह
देश की अर्थव्यवस्था से आजकल अजीब इशारे मिले हैं। बीते अक्तूबर में औद्योगिक उत्पादन 4.2 फीसद गिरा। जुलाई से सितंबर की तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की दर 5.3 प्रतिशत दर्ज की गई। सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पूरा जोर लगा रखा है, लेकिन देशी-विदेशी पूंजीपति नया निवेश करने से कतरा रहे हैं। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि हमारा देश ‘बैलेंस शीट रिसेशन' के...
More »कंपनी बड़ी या देश-- अरविन्द कुमार सेन
नोबेल पुरस्कार विजेता पॉल क्रुगमैन ने दो दशक पहले शोध पत्रिका हॉवर्ड बिजनेस रिव्यू में ‘देश एक कंपनी नहीं है' शीर्षक से शोध-पत्र लिखा था। यह शोध-पत्र उस दौर में प्रकाशित हुआ था, जब भुगतान संतुलन की बीमारी से दो-चार हो रही भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक संगठन की अगुआई में नवउदारवादी नीतियां थोपी जा रही थीं। हर तरफ आर्थिक सुधारों की मार्फत अर्थव्यवस्था को...
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