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नीति आयोग : एक साल का सफर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2014 को अपने पहले स्वतंत्रता दिवस संबोधन में कहा था कि वे योजना आयोग की जगह नयी संस्था बनाना चाहते हैं. इस घोषणा के अनुरूप, 1 जनवरी, 2015 को उन्होंने नीति आयोग बनाने की घोषणा की. इस नयी संस्था से देश को काफी अपेक्षाएं हैं. इसे जहां व्यापार, स्वास्थ्य, कृषि, ग्रामीण विकास, शिक्षा तथा कौशल विकास जैसे मसलों पर ज्ञान के सृजन और...

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आधी अधूरी खाद्य व्यवस्था-- जाहिद खान

तत्कालीन यूपीए सरकार जब साल 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक लेकर आई, तो यह उम्मीद बंधी थी कि इस विधेयक के अमल में आ -जाने के बाद देश की 63.5 फीसद आबादी को कानूनी तौर पर तय सस्ती दर से अनाज का हक हासिल हो जाएगा। अफसोस, इस कानून को बने तीन साल हो गए, मगर यह आज भी पूरे देश में अमल में नहीं आ पाया है। नौ...

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इक्कीसवीं सदी दलितों की है-- चंद्रभान प्रसाद

दलितों का महत्व अचानक ही बढ़ गया है, तमाम राजनीतिक पार्टियां डॉ. भीमराव अंबेडकर की परंपरा को अपनाने का दावा करते हुए दलितों के साथ अपनापा स्थापित करने में लग गई हैं। संघ परिवार जैसा दलितों का घनघोर विरोधी संगठन भी अंबेडकर के पक्ष में खड़ा होने लगा है। इन बुनियादी तथ्यों पर जरा नजर दौड़ाइए- 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा ने 282 सीटें...

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अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण सदस्य हैं हमारे बुजुर्ग

शिक्षा, सूचना एवं स्वास्थ्य में सुधार और इस कारण जीवन प्रत्याशा में वृद्धि के कारण 60 वर्ष से अधिक उम्र के भारतीयों की संख्या 1971-81 के बीच 5.3 फीसदी से बढ़ कर 5.7 फीसदी तथा 1991-2011 के बीच छह फीसदी से बढ़ कर आठ फीसदी हो गयी. लेकिन, देश में वरिष्ठ नागरिकों के लिए समुचित नीतियां नहीं हैं. अर्थव्यवस्था और समाज में उनकी भूमिका को सम्मान देने...

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'कैसा क़ानून कि पेट की अंतड़ियां ऐंठती रहें?'-- नीरज सिन्हा

निराशो देवी को बाल-बच्चे नहीं हैं, पति कुछ दिन पहले चल बसे, चूंकि राशन कार्ड नहीं इसलिए सरकारी अनाज उन्हें नहीं मिल सकता- स्थिति अब भूखों मरने की है. सालहन के बंधन नायक के परिवार का ‘पेट नदी-नालों से पकड़ी मछलियों को खाकर भरता है.' वो भी हर दिन हासिल नहीं हो पाता है. राजधानी रांची से महज़ 35 किलोमीटर दूर बसे सालहन में दर्जनों और झारखंड में हज़ारों ऐसे ग़रीब परिवार हैं...

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