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पीपीपी से सावधान -योगेश दीवान

 भूमंडीलकरण-उदारीकरण के इस काल में अचानक एनजीओ या सिविल सोसाइटी समूहों की बाढ़ आना और वह भी शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, परिवहन और भोजन के मुद्दों पर थोड़ा शक पैदा करता है. खासकर, डब्ल्यूएसएफ की उस पूरी प्रक्रिया के बाद जो कहता था- “एक और दुनिया संभव है.” WSF इस असंभव को संभव बनाया है पीपीपी यानी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के उस मॉडल ने, जो न सीधा निजीकरण है न पूंजीवाद और न...

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विद्रोह के केंद्र में दिन और रातें

जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ता और ईपीडब्ल्यू के सलाहकार संपादक गौतम नवलखा तथा स्वीडिश पत्रकार जॉन मिर्डल कुछ समय पहले भारत में माओवाद के प्रभाव वाले इलाकों में गए थे, जिसके दौरान उन्होंने भाकपा माओवादी के महासचिव गणपति से भी मुलाकात की थी. इस यात्रा से लौटने के बाद गौतम ने यह लंबा आलेख लिखा है, जिसमें वे न सिर्फ ऑपरेशन ग्रीन हंट के निहितार्थों की गहराई से पड़ताल करते हैं, बल्कि माओवादी...

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दाल से टूटता रोटी का नाता

नई दिल्ली [रमेश दुबे]। दलहनों की पैदावार बढ़ाने के लिए लगभग दो दर्जन योजनाओं की असफलता के बाद केंद्र सरकार ने सीधे किसानों को ज्यादा कीमत देने की रणनीति अपनाई है। इसके तहत दलहनी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी बढ़ोत्तरी की गई है। जहा अरहर के समर्थन मूल्य में सात सौ रुपये की वृद्धि की गई है, वहीं मूंग में 410 रुपये तथा उड़द में 380 रुपये की...

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हौसले के पंख से मिली मंजिल

राजगंज, धनबाद [शुभंकर राय]। कहते हैं हौसले हों बुलंद तो कोई भी कार्य नामुमकिन नहीं। इसे सच कर दिखाया है एक ग्रामीण महिला गीता ने। अथक प्रयास व अदम्य साहस के साथ बुलंद हौसले ने पहले तो खुद को कामयाबी दिलाई। इसके बाद उनके प्रयास से आसपास की सैकड़ों महिलाओं की जिंदगी में नया सबेरा आया। हौसले के पंख से उसे मंजिल मिल गई। स्वावलंबन के साथ विकास की...

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इस गांव के घरों में नहीं लगते दरवाजे

इलाहाबाद। आज के समय में जहां बढ़ती चोरी और लूट की घटनाओं से सबक लेकर लोग अपने घरों में सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रकार के पुख्ता इंतजाम करते हैं, वहीं उत्तर प्रदेश में एक ऐसा गांव है, जहां स्थानीय लोग अपने घरों में दरवाजे तक नहीं लगाते। उनकी मान्यता है कि मां काली उनके घरों की रक्षा करती हैं। इलाहाबाद जिले के कोरांव क्षेत्र स्थित दलित बहुल सिंगीपुर गांव के मकानों में यह समानता देखने...

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