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एक साल में आधी हो गई है कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर-- सीएसओ के नये आंकड़े

बीते वित्तवर्ष में कृषि क्षेत्र की बढ़वार की दर 2016-17 के मुकाबले तकरीबन 50 फीसद कम रही. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय(सीएसओ) के नये आंकड़ों से पता चलता है 2016-17 में कृषि-क्षेत्र की वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत रही जबकि 2017-18 में इस क्षेत्र का जीवीए(ग्रास वैल्यू एडेड/सकल मूल्य वर्धन) 3.4 प्रतिशत पर पहुंच गया है.   सीएसओ ने हाल में 2017-18 के लिए जीडीपी के अनंतिम अनुमान के साथ-साथ चौथी तिमाही, 2017-18 के लिए भी जीडीपी अनुमान...

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सरकार का तीसरा अग्रिम अनुमान : फसल वर्ष 2017-18 में खाद्यान्नों का होगा रिकॉर्ड उत्पादन

नयी दिल्ली : कृषि उत्पादन के बारे में सरकार ने ताजा अनुमान जारी किया है. सरकार के अनुमानों के अनुसार, देश में चालू फसल वर्ष जुलाई-जून 2017-18 में 27 करोड़ 95.1 लाख टन अनाज का उत्पादन होगा, जो एक कीर्तिमान है. यह अनुमान पिछले साल के उत्पादन के मुकाबले 1.6 फीसदी अधिक है. पिछले साल से मॉनसून अच्छा रहा और कृषित उत्पादों के समर्थन मूल्य में वृद्धि से किसान अधिक...

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देश के संगठित क्षेत्र में बढ़े रोजगार

नई दिल्ली। विपक्ष भले ही सरकार पर नौकरियों के सृजन को लेकर निशाना साध रहा हो लेकिन हकीकत यह है कि संगठित क्षेत्र में रोजगार बढ़े हैं। सरकार की ओर से जारी ताजा आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं। केंद्रीय सांख्यकीय एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के अनुसार सितंबर 2017 से फरवरी के दौरान कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के 32 लाख नए सदस्य जुड़े हैं जबकि करीब 70 लाख नए कर्मचारियों...

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मार्च में ढांचागत क्षेत्र की वृद्धि दर 4.1 फीसद रही

नई दिल्ली। कोयला, कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस सहित कई क्षेत्रों के कमजोर प्रदर्शन के चलते मार्च में कोर सेक्टर यानी ढांचागत क्षेत्र के आठ उद्योगों की वृद्धि दर घटकर 4.1 प्रतिशत रह गयी है। कोर सेक्टर की यह वृद्धि तीन माह में न्यूनतम है। वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार मार्च 2017 में कोर सेक्टर की वृद्धि दर 5.2 प्रतिशत थी। इससे पूर्व कोर सेक्टर की न्यूनतम वृद्धि 3.2 प्रतिशत दिसंबर 2017...

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आर्थिक प्राणवायु बनी नकदी-- मोहन गुरुस्वामी

देश के विभिन्न हिस्सों में एटीएम नकदी से रिक्त पड़े हैं और आम आदमी बेहाल है. तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश में हालात ज्यादा कठिन हैं, जिनकी सीमाएं बड़े दांववाले आसन्न चुनावों के राज्य कर्नाटक से लगी हैं. इस किल्लत की सहज व्याख्या तो यही नजर आती है कि उपलब्ध नकदी कर्नाटक की जनता को सुशासन देने की स्पर्धा में लगे बड़े पक्षों के सुरसाकार मुखों का ग्रास बन गयी...

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