विनायक सेन को लेकर मीडिया और समाज में दो तरह की छवि है। एक विनायक सेन, जिन्हें हमेशा देश के दुश्मन के तौर पर पेश किया जाता है, दूसरे विनायक सेन वे जो आदिवासियों के शुभचिंतक हैं और गरीब समाज के मसीहा हैं। दोनों विचार अतिवादी हैं। इस तरह एक आम भारतीय असमंजस की स्थिति में है कि वह इन दोनों में से किसे सच माने और किसे झूठ! यदि हम मीडिया की नजर...
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फेंके जूठन से आग बुझती पेट की
आसनसोल : विकासशील देशों के लिस्ट में लगातार आगे बढ़ रहे भारत में अब भी लाखों बच्चे ऐसे हैं जो हर दिन लोगों द्वारा फ़ेके हुए कचरे से अपना पेट भरते हैं. शनिवार को आसनसोल रेलवे स्टेशन के सात नंबर प्लेटफॉर्म पर कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिला. चार गरीब बच्चे कचरे के पास पहुंचे और एक पॉलिथिन को उठा-उठा कर देखने और खोलने लगे. एक पॉलिथिन में कुछ बचा हुआ...
More »पूरा गांव बीमार, खेत में हो रहा इलाज-अब तक सात मरे
| दो दिनों में सोनुवा के एक गांव में डायरिया से सात लोगों की मौत हो चुकी है. पूरा गांव तबाह है. इलाज के लिए खुद चिकित्सक नहीं गये. मरीजों को खेत में बांस की बल्ली पर बोतल रख कर स्लाइन चढ़ायी जा रही है. न एंबुलेंस पहुंची है और न ही चलंत चिकित्सा की सुविधा. करोड़ों की चिकित्सा बसें बेकार पड़ी हैं. यह है झारखंड में चिकित्सा सेवा का हाल. || 2800...
More »वंशवाद से व्यक्तिवाद तक-रामचंद्र गुहा
दिसंबर 2008 में मैं आईआईटी मद्रास में भारतीय लोकतंत्र की अपूर्णताओं पर बोल रहा था। इन्हीं में से एक बिंदु था राजनीतिक वंशवाद। मेरे बाद कनिमोझी का व्याख्यान था। उन्होंने मेरे वक्तव्य के कुछ अंशों का खंडन करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि मैं युवा भारतीयों को अपनी पसंद का कॅरियर चुनने से रोक रहा हूं। यदि किसी क्रिकेटर का बेटा क्रिकेटर बन सकता है और किसी संगीतकार की...
More »जन्म से बंधी सामाजिक बेड़ियां : हर्ष मंदर
लाखों महिलाएं, पुरुष और बच्चे आज भी उन अपमानजनक सामाजिक बेड़ियों में बंधे हुए हैं, जो उनके जन्म से ही उन पर लाद दी गई थीं। आधुनिकता की लहर के बावजूद आज भी भारत के दूरदराज के देहातों में जाति व्यवस्था जीवित है। यह वह व्यवस्था है, जो किसी व्यक्ति के जाति विशेष में जन्म लेने के आधार पर ही उसके कार्य की प्रकृति या उसके रोजगार का निर्धारण कर...
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