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राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने की चुनौती-- जयंतीलाल भंडारी

इस समय देश के समक्ष चालू वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान बढ़े हुए राजकोषीय घाटे की चिंताएं मुंह बाए खड़ी हैं। वित्तीय वर्ष 2018-19 के बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 6.24 लाख करोड़ रुपये या सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.3 प्रतिशत रखा गया था। नवंबर, 2018 के अंत तक यह 7.17 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है, जो बजट अनुमान से करीब 15 प्रतिशत ज्यादा है। इसका...

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औद्योगिक उत्पादन की रफ्तार 17 माह में सबसे निचले स्तर पर पहुंची

देश में औद्योगिक उत्पादन (Industrial output( की रफ्तार नवंबर में 0.5 प्रतिशत पर पहुंच गई है, जो 17 माह में सबसे कम है। विनिर्माण क्षेत्र विशेषकर उपभोक्ता और पूंजीगत सामान के उत्पादन में भारी गिरावट आई है। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने शुक्रवार को ये आंकड़े जारी किए। इससे पहले जून 2017 में औद्योगिक उत्पादन वृद्धि दर 0.3 फीसदी थी और नवंबर 2017 में यह 8.5 फीसदी रही थी।...

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किसानों की खुशहाली का कारगर रोडमैप- जयंतीलाल भंडारी

नये वर्ष 2019 की शुरुआत से ही देश की अर्थव्यवस्था के परि²दृश्य पर किसानों की कर्ज मुक्ति और विभिन्न उपहारों के लिए बड़े-बड़े प्रावधान दिखाई देने की संभावनाओं से कृषि और किसानों की खुशहाली दिखाई देगी। केन्द्र सरकार लघु एवं सीमांत किसानों की आय में कुछ बढ़ोतरी करने की नई योजना भी ला सकती है। तीन राज्यों में किसानों की कर्ज माफी के वचन से कांग्रेस के चुनाव जीतने के...

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बैंकों, अर्थव्यवस्था के लिए घातक हो सकता है पूंजी भंडार कम करना: रिज़र्व बैंक

मुंबई: रिजर्व बैंक ने कहा है कि ऊंचे फंसे कर्ज (एनपीए) और उसे कवर करने के लिए अपर्याप्त प्रावधान होने के साथ पूंजी संबंधी जरूरतों अथवा जोखिम पूंजी नियमों में किसी भी तरह की रियायत दिया जाना बैंकों के साथ ही समूची अर्थव्यवस्था के लिए घातक हो सकता है. रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट में यह कहा गया है. बासेल- तीन नियमों में विभिन्न प्रकार के कर्ज के लिए जोखिम प्रावधान...

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वैश्विक मंदी के संकेत देता अमेरिका- अजीत रानाडे

वर्ष 2018 का आगाज आर्थिक वृद्धि के लिए एक बड़े आशावाद के साथ हुआ. साल 2017 के समापन ने भी साल की वास्तविक वृद्धि को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्वानुमानों से आगे पहुंचा दिया था, जबकि इसके पहले के छह वर्षों के दौरान प्रत्येक वर्ष की शुरुआत में उसके द्वारा घोषित वार्षिक पूर्वानुमानों को लगातार नीचे लाने की जरूरत पड़ती रही, क्योंकि वास्तविक वृद्धि उन पर कभी खरी नहीं उतर...

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