भारत में किसानों की दशा दशकों तक नजरअंदाज किये जाने के कारण अब बुरी तरह बिगड़ चुकी है. सरकार ने खेतिहरों की आय दोगुना करने तथा उपज का उचित दाम दिलाने का वादा किया है, जिसे पूरा करने की दिशा में इस साल कुछ ठोस कोशिश की उम्मीद है. खेती को फायदेमंद पेशा बनाने, फसलों के सही मूल्य दिलाने, कर्ज से राहत आदि की प्राथमिकताएं इस साल हैं. इस संबंध...
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छत्तीसगढ़: धान बीमा में आ रही समस्याओं का जल्द होगा निराकरण
रायपुर। छत्तीसगढ़ में धान के बीमा भुगतान में आ रही समस्याओं का शीघ्र निराकरण कर लिया जाएगा। केन्द्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह और कृषि मंत्री बृजमोेहन अग्रवाल के बीच बुधवार को नई दिल्ली के कृषि भवन में हुई उच्च स्तरीय बैठक में केंद्रीय कृषि मंत्री ने अधिकारियों को निर्देशित किया कि वे बीमा कम्पनी के साथ बैठक कर तत्काल समस्या का निराकरण करें। इस दौरान अग्रवाल ने छत्तीसगढ मे...
More »ग्रीष्मकालीन धान फसल का नहीं होगा बीमा, दलहन-तिलहन को वरीयता
कोरबा। रबी फसल के तहत ग्रीष्म धान को प्रधानमंत्री बीमा योजना में इस वर्ष शामिल नहीं किया गया गया है। किसानों को बुआई में इसका लाभ नहीं मिल सकेगा। रबी पुसल के लिए 39 हजार हेक्टेयर क्षेत्राच्छादन का लक्ष्य तय किया गया है। सिंचित व असिंचित क्षेत्र में गेहूं के अलावा दलहन-तिलहन के साथ आलू बुआई को वरीयता दी जा रही है। उक्त पुसलों को लिए प्रधानमंत्री बीमा योजना के...
More »कहीं बैंकों से भरोसा ना उठ जाय-- बिभाष कुमार श्रीवास्तव
अमेरिका में आए 2008 के वित्तीय भूचाल से पूरी दुनिया में अफरा-तफरी मच गई थी। बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को सरकार ने बेल-आउट पैकेज के माध्यम से उबारा। बेल-आउट का जबर्दस्त विरोध किया गया। लोगों ने कहा कि ‘करदाताओं' के पैसे से किसी विफल होती संस्था को उबारना नैतिक खतरे (मोरल हजार्ड) पैदा करता है। तब वित्तीय मामलों के जानकारों की तरफ से ‘बेल-इन' की नई अवधारणा पेश की गई।...
More »बीमार स्वास्थ्य तंत्र का निदान-- राजू पांडेय
विश्व स्वास्थ्य सूचकांक में भारत का स्थान 188 देशों में 143वां है। भारत स्वास्थ्य पर अपने जीडीपी का सिर्फ 1.4 प्रतिशत व्यय करता है। जबकि अमेरिका जीडीपी का 8.3 प्रतिशत, चीन 3.1 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका 4.2 प्रतिशत व्यय करता है। स्वास्थ्यमंत्री फरवरी 2015 में राज्यसभा में यह स्वीकारकर चुके हैं कि देश में चौबीस लाख नर्सों और चौदह लाख डॉक्टरों की कमी है। हम प्रतिवर्ष केवल साढ़े पांच हजार...
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