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बुंदेलखंड-- भूख से कराह रहे सहरिया परिवार

सूखा क्या पड़ा, जैसे सहरिया परिवारों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। खेतों में कटाई कर उसमें गिरे-पड़े दानों को बीनकर और मेहनत-मजदूरी कर अपना जीवन-यापन करने वाला सहरिया समुदाय सूखे की जबरदस्त मार झेल रहा है। किसी ने खाने को दे दिया तो ठीक है, नहीं तो वह खाली पेट सोने को मजबूर हो जाते हैं। ग्राम पंचायत छपरट की सहरिया बस्ती के हालात यह हैं कि यहां के...

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मजदूर होने का मतलब- डा अनुज लुगुन

अभी कुछ दिन पहले ही कोलकाता में ओवरब्रिज के गिरने से 22 लोगों के मरने की खबर आयी थी. मरनेवालों में ज्यादातर मजदूर थे. इनमें से एक उत्तर प्रदेश निवासी शंकर पासवान भी था, जो मोटिया का काम करता था. वह होली में अपने घर इसलिए नहीं गया, ताकि वह कुछ दिन और काम करके बेटी की शादी के लिए कुछ पैसे जमा कर सके. यह हमारे देश के मजदूरों...

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क्या गरीबी एक राजनीतिक पूंजी है? - विजय संघवी

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हाल ही में कहा कि भारत में गरीबी कायम रखने में कांग्रेस का योगदान था, क्योंकि गरीबों को वे वोटबैंक की तरह मानते थे। शाह ने जो कहा, वह एक राजनीतिक आम धारणा भी है। लेकिन इस कथन की विस्तार से पड़ताल करने के लिए हमें इसके विभिन्न् परिप्रेक्ष्यों को ठीक से समझना होगा। जॉन राल्स्टन सॉल ने तीन तरह के छवि-निर्माताओं की तस्दीक की है।...

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'दस साल में और बहुत सारी विधवाएं देखेंगे'- सौतिक बिस्वास

महाराष्ट्र के वाशीम ज़िले के एक गांव में रहने वाले किसान मुकुंदा वाघ ने 2009 में पहली बार कीटनाशक पीकर आत्महत्या करने की कोशिश की थी. जब वो बेहोश होकर गिर गए और उनके मुंह से झाग निकलने लगा तो उनकी पत्नी ने उन्हें देखा और अस्पताल ले गईं. उस वक़्त अस्पताल में डॉक्टरों ने उनकी जान बचा ली. लेकिन तीन साल के बाद मई 2012 में क़िस्मत ने उनका साथ नहीं...

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मिलावटी दूध की बहती गंगा - भवदीप कांग

शुरुआत इसी विरोधाभासी तथ्य से करें कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है! पिछले पंद्रह वर्षों में भारत में प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता बढ़कर लगभग दोगुनी हो गई है। अब यह 322 ग्राम प्रतिदिन है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब भारत में दूध की मांग व आपूर्ति का तंत्र अच्छी तरह विकसित हो चुका है तो हम मिलावटी दूध पीने को मजबूर क्यों हैं?...

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