हाल ही में विश्व के दो अहम निकायों ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर अपनी चेतावनियां जारी की हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने इस वर्ष के साथ ही अगले वर्ष के लिए भी भारत की विकास दर को लेकर अपने अनुमान नीचे किये हैं, जिनमें 2018 के लिए अनुमान तो बस 7.4 प्रतिशत से घटकर 7.3 प्रतिशत तक ही गिरे हैं, पर अगले वर्ष के लिए उसने इसे 7.8 प्रतिशत से...
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आर्थिक प्राणवायु बनी नकदी-- मोहन गुरुस्वामी
देश के विभिन्न हिस्सों में एटीएम नकदी से रिक्त पड़े हैं और आम आदमी बेहाल है. तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश में हालात ज्यादा कठिन हैं, जिनकी सीमाएं बड़े दांववाले आसन्न चुनावों के राज्य कर्नाटक से लगी हैं. इस किल्लत की सहज व्याख्या तो यही नजर आती है कि उपलब्ध नकदी कर्नाटक की जनता को सुशासन देने की स्पर्धा में लगे बड़े पक्षों के सुरसाकार मुखों का ग्रास बन गयी...
More »किसानों को मिले आर्थिक आजादी-- अजीत रानाडे
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के किसान संगठन, अखिल भारतीय किसान सभा द्वारा आहूत 10,000 किसानों की एक मौन पदयात्रा ने बीते छह मार्च को नासिक से मुंबई की ओर प्रस्थान किया. उनकी मुख्य मांगें वन अधिकार अधिनियम 2006 के अंतर्गत किसानों को भूमि का स्थानांतरण, उनकी फसलों के लिए बेहतर कीमतें तथा ऋणमाफी पर केंद्रित हैं. जैसे-जैसे यह पदयात्रा मुंबई की ओर बढ़ी, इसमें पूरे महाराष्ट्र से दूसरे किसान भी...
More »क्या बैंक निजीकरण सही हल है?
भारत जैसे विशाल देश में 136 करोड़ लोगों के विकास की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बनी सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन में सरकारी बैंक प्रमुख भूमिका निभाते हैं. यदि ये न हों, तो विशालकाय केंद्रीय योजनाएं जैसे कि जन-धन योजना, मुद्रा योजना आदि कभी लागू ही न हो सकें. इन्हीं से ही व्यापक सामाजिक उत्थान का स्वप्न देखने में सरकार को एक ठोस धरातल मिलता है. यूनाईटेड बैंक आॅफ...
More »अर्थव्यवस्था पर मुस्तैदी जरूरी-- डा. अवनीन्द्र ठाकुर
पिछले कुछ समय से भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में आये कई आंकड़ों ने वर्तमान सरकार की कई नीतियों की सफलता पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है. उदाहरण के तौर पर देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर में कमी, सरकारी एवं निजी क्षेत्र में रोजगार की कमी, औद्योगिक विकास की चिंताजनक स्थिति इत्यादि कुछ आंकड़े हैं, जो सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. इस परिप्रेक्ष्य में...
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