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नीति आयोग ने गौशालाओं को आर्थिक रूप से व्यवहारिक बनाने की वकालत की, रियायती दरों पर पूंजी उपलब्ध कराने की बताई जरूरत

रूरल वॉयस, 05 मई  नीति आयोग के एक पैनल ने सुझाव दिया है कि गौशालाओं की पूंजी सहायता के माध्यम से मदद की जानी चाहिए। साथ ही खेती में उपयोग के लिए गाय के गोबर और गोमूत्र-आधारित वस्तुओं की मार्केटिंग की जानी चाहिए ताकि गौशालाओं को आर्थिक रूप से व्यवहारिक बनाया जा सके। इसके अलावा गौशालाओं के ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के लिए एक पोर्टल बनाने का प्रस्ताव पैनल ने दिया है। इस...

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प्रकृति के बचाव के लिए नए वैश्विक लक्ष्यों को कैसे पूरा करेगा भारत?

द थर्ड पोल, 11 अप्रैल दिसंबर 2022 में दुनिया की सरकारें हर जगह जैव विविधता यानी जंगली पौधों और जानवरों के तेज़ी से गायब होने की समस्या से निपटने के लिए कई कार्रवाइयों पर सहमत हुईं। कुछ विशेषज्ञों ने द् थर्ड पोल को बताया कि भारत को इन लक्ष्यों को असलियत बनाने में कुछ चीज़ों पर ध्यान देना होगा। जैसे: हैबिटैट संपर्क, ऐसे इकोसिस्टम जिन पर ध्यान नहीं दिया गया और...

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सालाना 50 फीसदी की दर से नष्ट हो रहे हैं पहाड़ी जंगल, खतरे में जैव विविधता: अध्ययन

डाउन टू अर्थ, 28 मार्च  दुनिया के 85 फीसदी से अधिक पक्षी, स्तनपायी और उभयचर प्रजातियां पहाड़ी जंगलों में रहते हैं, लेकिन ये जंगल तेजी से गायब हो रहे हैं। अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में, 2000 के बाद से 7.81 करोड़ हेक्टेयर यानी 7.1 फीसदी पहाड़ी जंगल गायब हो गए है। अधिकांश नुकसान उष्णकटिबंधीय जैव विविधता हॉटस्पॉट में हुआ है, जिससे संकटग्रस्त प्रजातियों पर दबाव बढ़ रहा है। 21वीं सदी की...

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कुपोषण से जूझ रहे हैं छत्तीसगढ़ के मवेशी, उत्पादकता और प्रजनन क्षमता पर असर

मोंगाबे हिंदी , 13 मार्च छत्तीसगढ़ के धमतरी के रहने वाले महेश चंद्राकर की गाय पिछले कई सप्ताह से बुखार से तप रही थी। उसका खाना-पीना कम हो गया था और वह बेहद कमज़ोर हो गई थी। दवाइयां असर नहीं कर रही थीं। स्थानीय पशु चिकित्सक ने ख़ून का नमूना लिया और शाम को रिपोर्ट आई कि गाय के खून में हिमोग्लोबिन की मात्रा काफी कम है।  महेश बताते हैं कि वे...

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मानव-वन्यजीव संघर्ष: बढ़ते संघर्ष की भारी कीमत चुका रहे हैं भारत जैसे देश

डाउन टू अर्थ, 01 मार्च क्या आप जानते हैं कि भारत, केन्या और यूगांडा जैसे विकासशील देश, विकसित देशों की तुलना में इंसानों और वन्यजीवों के बीच होते संघर्ष की कहीं ज्यादा भारी कीमत चुका रहे हैं। आर्थिक रूप से कमजोर क्षेत्रों को देखें तो वहां एक गाय या बैल को इस मानव-वन्यजीव संघर्ष में खोने का मतलब है कि किसान ने अपने बच्चे की करीब 18 महीने की कैलोरी को...

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