कॉरपोरेट प्रायोजित मीडिया की ओर से बनाई गई धारणा के उलट महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) से अहम नतीजे मिले हैं। अगर मीडिया की कुछ रिपोर्टों पर ग़ौर करें तो लगेगा कि मनरेगा के तहत शुरू हुए सार्वजनिक काम पूरी तरह बेकार हैं। हाल में एक संपादकीय में कहा गया, "देश के ज्यादातर हिस्सों में इसका (मनरेगा) मतलब बेमकसद गड्ढे खोदना और उन्हें भरना है।" इस बयान के...
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न्यूनतम सरकार अधिकतम शोषण- के सी त्यागी
श्रमिकों के शोषण का लंबा इतिहास रहा है। इसके विरुद्ध श्रमिकों ने समय-समय पर आवाज उठाई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रम कानून बने। मजदूर संगठित हुए, उन्हें अधिकार मिले, स्वतंत्रता मिली, सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ा। इसका असर हमने भारत में भी देखा। लेकिन नई औद्योगिक नीति और उदारीकरण का दौर परवान चढ़ने के साथ ही श्रमिक फिर शोषण का शिकार हुए। उनका सामाजिक दायरा घटा, अधिकार सिकुड़ते चले गए। इसी...
More »विकास मॉडलों के शोर में गुम मजदूर- रौशन किशोर/जीको दासगु्प्ता
चुनावी बहस-मुबाहिसों में विकास की चर्चा तो खूब है, लेकिन इस विकास का आधार और देश की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा मजदूर कहीं प्रमुख मुद्दा नहीं है. घोषणापत्रों में श्रमिकों के मसलों को शामिल तो किया गया है, लेकिन उनके लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है. देश में मजदूर वर्ग निरंतर शोषण और दमन का शिकार बनता रहा है. ‘मई दिवस’ के मौके पर मजदूरों से जुड़े मसलों को रेखांकित...
More »मजदूरों के हित में कई कानून
मित्रों, मई दिवस दुनिया भर में मजदूर दिवस के रूप मे मनाया जाता है. अपने देश में भी उस दिन मजदूर दिवस मनाया जाता है और मजदूरों के हितों से जुड़े विषयों पर हर स्तर पर बहस होती है. इस बहस के नतीजे भी आते रहे हैं. मालिक और मजदूर तथा काम लेना वाला और काम करने वाला यह दो वर्ग इस बहस का मुद्दा होता है. अगर उद्योगपतियों को छोड़...
More »चमक में छिपा अधेरा- प्रदीप सती
ताजमहल के बारे में कहा जाता है कि इसे बनवाने वाले मुख्य कारीगर के हाथ कटवा दिए गए थे ताकि वह फिर कोई ऐसी सुंदर इमारत न बना सके. ताजमहल से लेकर चीन की दीवार तक हुए बेहतरीन निर्माणों की जब भी बात होती है तो इन्हें बनाने वाले शिल्पियों के साथ हुए अन्याय के बहुत-से किस्से मिलते हैं. यह अन्याय 21वीं सदी तक भी जारी है. राजधानी दिल्ली की तस्वीर...
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