दिल्ली और उसके आसपास का इलाका इन दिनों प्रदूषण की अभूतपूर्व मार से ग्रस्त है। जिधर नजर डालिए, उधर धुंध की मटमैली चादर तले खांसते, कांपते और कांखते लोग मिल जाएंगे। अपना एक निजी अनुभव आपसे शेयर करता हूं। दीपावली को दोपहर के बाद से मैं जब भी अपने घर का दरवाजा खोलता, तो बेचैन हो उठता। सामने वाले फ्लैट में एक प्यारा शिशु रहता है। अभी उसे अपना पहला जन्मदिन मनाना...
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साफ पर्यावरण किसकी जिम्मेदारी!--- पुष्परंजन
दिल्ली के जिस वसुंधरा इन्कलेव में मैं रहता हूं, वहां 56 हाउसिंग सोसाइटी हैं, और उसके पीछे एक गांव है, दल्लूपुरा. इस गांव में कबाड़ का कारोबार लंबे समय से फलता-फूलता रहा है.अक्सर कबाड़ी कूड़े में प्लास्टिक, रबर और रसायन जलाते हैं, जिससे आसपास के अपार्टमेंट में रहनेवालों का जीना दूभर हो जाता है. पुलिस में इसकी लगातार शिकायत गयी, तब यह कुछ समय के लिए रुका. यह इसलिए नहीं...
More »साक्षात्कार:पर्यावरण को लेकर सरकार व समाज हो जागरूक
जंगल, जमीन हवा आदि प्रदूषित होते जा रहे हैं. धरती से लेकर आकाश तक कचरों को ढेर लगता जा रहा है. इसे लेकर दुनिया भर में चिंता व्यक्त की जा रही है. यह परिस्थिति कितनी गंभीर है और इससे कैसे निबटा जा सकता है, इन विषयों पर अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पर्यावरणविद डॉ अरविंद कुमार से संदीप कुमार ने बातचीत की. डॉ कुमार मगध विश्वविद्यालय, बोध गया व विनोवा भावे विश्वविद्यालय...
More »हेमंत सोरेन ने कहा, खनिजों का दंश भोग रहा है झारखंड
रांची. 14 वें वित्त आयोग के समक्ष झारखंड का पक्ष रखते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा : खनिज संपदा से परिपूर्ण होने के बावजूद झारखंड के लोग गरीब हैं. पूरे देश का पोषक माना जानेवाले झारखंड का एक तरह से शोषण हो रहा है. राज्य की खनिज संपदा के बदले मिलनेवाली सालाना तीन हजार करोड़ की रॉयल्टी बिल्कुल नगण्य है. खनिजों के बदले झारखंड बहुत कुछ खो रहा है. हमारा पर्यावरण प्रदूषित...
More »समझदारी का मोतियाबिंद
जनसत्ता 4 फरवरी, 2013: गार्गा चटर्जी इस घड़ी आशीष नंदी होना आफत को गले लगाना है। तकनीक के इस ताबड़तोड़ दौर में जहां बोले गए शब्द ध्वनि की रफ्तार को पछाड़ रहे हों, उनका अर्थ पीछे छूटता जा रहा, तो यह देख कर जरा भी अचरज नहीं होता कि साहित्य के एक समारोह में आशीष नंदी के ‘जातिसूचक’ शब्दों को कुछ विवाद प्रेमी लोग लपक लें। असल में सांप्रदायिकता के छद्म विरोध...
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