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समय के साथ बदले कानून-- कृष्णप्रताप सिंह

आपको याद होगा, 2012 में राजधानी दिल्ली के वसंत विहार इलाके में घटित निर्भया कांड के बाद तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने बलात्कारियों को सजा दिलाने वाले कानून को सख्त बनाया था। लेकिन दुर्भाग्य से इस कानून के लागू होने के बावजूद न बलात्कार घटे हैं, न पीड़िताओं की नियति बदली है। आंकड़े बता रहे हैं कि देश की राजधानी दिल्ली में हर रोज छह की औसत से बलात्कार हो...

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अभियुक्तों की पैरवी नहीं, अदालत की मदद करेंगे न्यायमित्र

नई दिल्ली। निर्भया कांड के नाम से चर्चित वसंतकुंज सामूहिक दुष्कर्म कांड में फांसी की सजा पाए अभियुक्तों की आपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि कोर्ट द्वारा नियुक्त न्यायमित्र हटेंगे नहीं। कोर्ट ने कहा है कि न्यायमित्र किसी अभियुक्त की पैरवी नहीं करेंगे बल्कि मामले की सुनवाई में कोर्ट की मदद करेंगे। ये आदेश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने मामले में दोषी दो अभियुक्तों...

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दुष्कर्म पीड़िता को गोवा में 10 लाख और छग में 50 हजार मुआवजा !

बिलासपुर, नईदुनिया न्यूज। छत्तीसगढ़ में दुष्कर्म पीड़िता को मुआवजा के रूप में महज 50 हजार रुपए दिया जाता है। जबकि गोवा जैसे छोटे राज्य में क्षतिपूर्ति 10 लाख रुपए दी जाती है। इसे लेकर हाईकोर्ट की डिवीजन ने दायर पीआईएल पर सुनवाई करते हुए चीफ सेक्रेटरी को संशोधन के संबंध में विचार कर 5 अक्टूबर से पहले जानकारी उपलब्ध कराने कहा है। प्रदेश में दुष्कर्म पीड़िताओं के लिए राज्य शासन ने...

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मेधा के उत्पीड़न से सबक-- अफलातून

एक मेधावी और संवेदनशील युवा राजनीतिक की मौत ने भारतीय समाज को हिला दिया है. इस युवा में जोखिम उठाने का साहस था और अपने से ऊपर की पीढ़ी के उसूलों को आंख मूंद कर न मानने की फितरत भी. वह एक राजनीतिक कार्यकर्ता था, उसका संघर्ष राजनीतिक था. वह आतंक के आरोप में दी गयी फांसी के विरुद्ध था, तो साथ-साथ आतंक फैलाने के लिए सीमा...

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आधी-आबादी : इंसाफ का इंतजार-- अवनीश सिंह भदौरिया

दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की शिकार निर्भया के मामले में अपराधियों को कमोबेश सजा मिल भी गई, लेकिन इस तरह के तमाम मामलों में आज भी इंसाफ का इंतजार है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में लड़कियों की सुरक्षा के जितने भी प्रबंध हैं, वे नाकाफी हैं। लड़कियों, महिलाओं और बच्चियों के लिए दिल्ली या दूसरे राज्य कितने सुरक्षित हैं, इसके जीते जागते उदाहरण प्रतिदिन अखबारों और टीवी चैनलों पर पढ़ने-देखने को...

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