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क्यों बंद हो रहे सरकारी स्कूल--- कौशलेन्द्र प्रपन्न

एक सरकारी स्कूल का बंद होना क्या मायने रखता है इसका अनुमान शायद हम आज न लगा सकें। संभव है इसका खमियाजा समाज को दस-बीस बरस बाद भुगतना पड़े। एक ओर विकास के डंके बज रहे हैं वहीं दूसरी ओर आम बच्चों से उनकी बुनियादी शिक्षा की उम्मीद यानी सरकारी स्कूल तक छीने जा रहे हैं। हमने 2000 में सहस्राब्दी विकास लक्ष्य तय किया था। उसमें 2010 तक सभी बच्चों...

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न राजनीति सुधरेगी, न पुलिस --- विभूति नारायण राय

भारतीय पुलिस सेवा में तीन दशकों से अधिक के अपने सफर के दौरान मुझे जिस बात से सबसे अधिक आश्चर्य होता था, वह थी भारतीय जनता के मन मे पुलिस सुधारों को लेकर पसरी हुई उदासीनता। यह देखकर मन उदास हो जाता था कि जिस संस्था से औसत भारतीय नागरिक का सबसे अधिक वास्ता पड़ता है, उसे बेहतर बनाने के लिए किसी तरह का कोई आंदोलन नहीं होता। अधिक से...

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संपत्ति में स्त्री के हिस्से की हकीकत-- प्रदीप श्रीवास्तव

महिलाओं को निजी संपत्ति में हिस्सा देने की बहस काफी पुरानी है। हमारे देश में स्वतंत्रता संग्राम के साथ ही यह बहस तेज हो गई थी। ब्रिटिश राज और उससे आजादी के बाद समय-समय पर कानून बनाए गए हैं, जो महिलाओं को निजी संपत्ति का अधिकार तो देते हैं, लेकिन समाज में पुरुष प्रधान सोच के कारण कानून पंगु बना रहा। वर्तमान समय में फैक्टरी, कार्यालय, खेत या घर- हर...

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तीन तलाक पर अच्छा फैसला-- भूपेन्द्र यादव

तीन तलाक पर आये फैसले को किसी संस्था या धार्मिक परंपरा विशेष के खिलाफ न मानकर एक प्रगतिशील कदम के रूप में देखना चाहिए, जो समाज के साधारण एवं वंचित वर्ग के प्रति निष्पक्ष न्याय व्यवस्था का फैसला है. इस विषय पर मीडिया के सारे साधनों में बहस और चर्चा हुई है, जिसमें धार्मिक संवैधानिक विशेषज्ञों के साथ साधारण जन और पीड़ित पक्षों ने भी बहस की है. यह...

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जज को सजा से उपजे सवाल - विराग गुप्‍ता

कलकत्ता हाईकोर्ट के जज सीएस करनन का सुप्रीम कोर्ट के साथ शुरू हुआ चूहे-बिल्ली जैसा खेल एक तरह की संवैधानिक त्रासदी में तब्दील होता दिख रहा है। करनन ने सुप्रीम कोर्ट के आठ जजों के खिलाफ पांच वर्ष सश्रम कारावास का दुस्साहसिक आदेश दिया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने करनन को छह महीने के लिए जेल भेजने का आदेश दे दिया है। गौरतलब है कि आजादी के बाद पहली बार...

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