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कब मिलेगी प्रवासी मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा?

-न्यूजक्लिक, वैसे तो अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत प्रवासी मजदूरों के कल्याण के संरक्षण को लेकर कई कानून मौजूद हैं, लेकिन वे शायद ही कभी अमल में लाये जाते हैं। एक आदिवासी प्रवासी महिला की मौत ने जो कि भिवंडी के नजदीक धान के खेतों में काम करती थी, की मौत ने प्रवासी मजदूरों की सामजिक सुरक्षा की जरूरत को एक बार फिर से रेखांकित किया है। चालीस वर्षीया चन्द्राबाई थालेकर, जिनके तीन...

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स्वामी अग्निवेश: आधुनिक आध्यात्मिकता का खोजी

-द वायर, 81 साल पूरे होने में कुछ रोज़ रह गए थे कि स्वामी अग्निवेश ने इस संसार से विदा ली. वे गृहस्थ नहीं थे, लेकिन संसार से उनका नाता प्रगाढ़ था. वे विरक्त कतई नहीं थे. राग हर अर्थ में उनके व्यक्तित्व को परिभाषित करता था. प्रेम, घृणा और क्रोध, ये तीनों ही भाव उनमें प्रचुरता से थे. इसलिए वे उन धार्मिकों की आख़िरी याद थे जिन्होंने धर्म के प्रति आस्था...

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क्या मनरेगा के लिए आंवटित अतिरिक्त 40,000 करोड़ रुपये का राहत पैकेज लॉकडाउन के दौरान वापस लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए मददगार साबित होगा ?

साल 2020 की शुरुआत में सामाजिक कार्यकर्ताओं और संबंधित अर्थशास्त्रियों ने साल 2020-21 के लिए गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) के तहत कम से कम 1 लाख करोड़ रुपये के आवंटन की मांग की. लेकिन 1 फरवरी को वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में वित्त वर्ष 2020-21 के लिए मनरेगा के तहत केवल Rs.61,500 करोड़ आवंटित किए. जोकि 2019-20 में मनरेगा पर खर्च किए गए फंड की तुलना...

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भारत के दक्षिणी राज्यों में लगभग 10 लाख महिलाओं ने कैसे बंद किया बीड़ी बनाना

द प्रिंट, ऐसे समय में, जब भारत में बहस चल रही है कि महिला मज़दूरों पर बीड़ी उद्योग के बोझ को कैसे कम किया जाए, देश के दक्षिणी सूबे इसका एक खाका पेश कर रहे हैं. 1993 से 2018 के बीच, भारत में बीड़ी मज़दूरों की संख्या में, कुल मिलाकर 21 लाख का इज़ाफा हुआ है लेकिन दूसरी तरफ एक अच्छी खासी गिरावट भी देखी गई. दक्षिणी सूबों- तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश-तेलंगाना...

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यूपी: चित्रकूट में काम के बदले मासूम बच्चियों का यौन शोषण!

-न्यूजक्लिक, “हम लाचार हैं, हम मान जाते हैं। ये हमें काम देते हैं, हमारा शोषण करते हैं और फिर पूरी दिहाड़ी भी नहीं देते। जब हम जिस्मफरोशी से मना करते हैं तो हमें धमकी दी जाती है कि हमें कोई काम नहीं दिया जाएगा। अगर हमें कोई काम नहीं मिला तो हम खाएंगे क्या? ऐसे में हमें इनकी शर्तें माननी पड़ती हैं।” ये दर्द कारवी गांव की एक नाबालिग बच्ची ने बयां...

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