-डाउन टू अर्थ, महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई से लगे पालघर जिले के समुद्री तट पर स्थित और पर्यावरण के लिए अति संवेदनशील क्षेत्र वाढवण में बंदरगाह निर्माण को लेकर स्थानीय लोग नाराज हैं। उनका आरोप है कि इस परियोजना के अंतर्गत पर्यावरण को होने वाले नुकसान का पर्याप्त अध्ययन नहीं किया गया। विरोध का दूसरा कारण यह है कि जैव विविधता और मछुआरों तथा किसानों की आजीविका की दृष्टि से यह पूरी...
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‘नेता पुल बनवा देंगे कहकर वोट ले जाते हैं और हम वहीं के वहीं रह जाते हैं’
-द वायर, पश्चिम चंपारण के ठकराहा प्रखंड के धूमनगर गांव के भरपटिया टोले के पास दो दर्जन लोग गंडक नदी के किनारे नाव का इंतजार कर रहे हैं. शाम का गहराने लगी है. एक छोटी नाव अभी कुछ देर पहले छह-सात लोगों को लेकर निकली है. ग्रामीण नविक से जल्दी लौटने का आग्रह करते हैं ताकि सूरज डूबने के पहले अपने गांव तक पहुंच जाएं. घाट पर दो और नावें हैं, जो...
More »लॉकडाउन के बाद समुद्र में फंसे हैं एक लाख मछुआरे और मछली मजदूर
-गांव कनेक्शन, जब आप इस लेख को पढ़ रहे हैं, तब कम से कम एक लाख मछुआरे और प्रवासी मछली मज़दूर महाराष्ट्र के तट से दूर अरब सागर में अपनी मछली पकड़ने वाली नावों में फंसे हुए हैं। राज्य में बड़ी संख्या में ऐसे मछुआरे रहते हैं जो गहरे समुद्र में मछली पकड़ते हैं और उन्हें इसके लिए कई दिनों या हफ्तों तक समुद्र में ही रहना पड़ता है। जब वे...
More »पर्यावरण की साथी स्त्रियां
पर्यावरण आंदोलन के उदय का मुख्य कारण पर्यावरणीय विनाश ही रहा है। आलोचकों का कहना है कि स्वाधीनता पाने के बाद से पश्चिमी अनुभव पर आधारित आर्थिक विकास के प्रतिमानों की नकल उतारने की वजह से भारत में प्राकृतिक संसाधनों पर संघर्ष तीव्र हुए। दूसरा, विकास योजनाओं का संसाधनों के सामाजिक पहलुओं से अनजान होना भी संसाधनों के शोषण और उस पर निर्भर लाखों ग्रामवासियों की बदहाली का कारण है।...
More »तूफान और बदकिस्मत मछुआरे-- एस श्रीनिवासन
गुजरात चुनाव के मद्देनजर जारी तू-तू, मैं-मैं की राजनीति और पद्मावती फिल्म को लेकर देश के उत्तरी राज्यों मेंमचे हंगामे के आगे दक्षिण भारत के उन हजारों मछुआरों और उनके परिवारों की दारुण कथा बौनी रह गई, जो ओखी चक्रवाती तूफान की मार से उजड़-बिखर गए हैं। तमिलनाडु और केरल के तटीय इलाकों के 800 मछुआरे आज भी अपने घर वापस नहीं लौट पाए हैं। करीब 10 दिनों पहले वे...
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