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जो जनता आज उमर को आतंकवादी कह रही है, वो उसी के लिए काम करना चाहता था…

-द वायर, 23 दिसंबर को उमर खालिद की गिरफ़्तारी के 100 दिन पूरे हो गए. अपनी गिरफ़्तारी से 10 दिन पहले उमर ने मुझसे कहा था कि वो कुछ ऐसे युवाओं को एक साथ जोड़ना चाहता है जो सोशल मीडिया पर नफ़रत की राजनीति पर लगाम लगा सकें और जनता के ज़रूरी मुद्दों पर बात कर सकें. जो जनता आज उमर को आतंकवादी कह रही है, उमर उसी जनता के लिए काम करना...

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अकाल मानवता की दहलीज़ पर आ पहुँचा है: नोबेल शांति पुरस्कार विजेता WFP

-बीबीसी, वर्ल्ड फू़ड प्रोग्राम को साल 2020 का नोबेल शांति पुरस्कार गुरुवार को प्रदान किया गया. वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम के एग्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर डेविड बीज़ली ने नोबेल शांति पुरस्कार ग्रहण किया. उन्होंने कहा, ''ये कल्पना करना असंभव है कि 400 ईस्वी में रोम शहर में भीषण अकाल की वजह से पूरी आबादी के 90 प्रतिशत लोग मारे गए थे. उसी समय रोमन एम्पायर के पतन की शुरुआत हुई. सवाल ये है कि पतन की...

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क्या मान लें कि 2020 का 5 अगस्त भारतीय गणतंत्र के दूसरे संस्करण का जन्म दिवस है?

-सत्यहिंदी, क्या हमें मान लेना चाहिए कि 2020 का 5 अगस्त भारतीय गणतंत्र के पहले संस्करण का अवसान और दूसरे संस्करण का जन्म दिवस है? क्या इसकी चमक दमक 15 अगस्त की आभा को धूमिल कर देगी? या इसका उलटा होगा? यानी 15 अगस्त की तारीख़ हमें उन वायदों की याद दिलाती रहेगी जिनको लेकर हम अपनी प्रतिबद्धता दृढ़ नहीं रख पाए? उसी लापरवाही का नतीजा तो 5 अगस्त की तारीख़...

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प्रेमचंद 140 : जीवन के प्रति दहकती आस्था

-सत्यहिंदी, प्रेमचंद को लेकर साहित्यवालों में कई बार दुविधा देखी जाती है। उनका साहित्य प्रासंगिक तो है लेकिन क्यों? क्या ‘गोदान’ इसलिए प्रासंगिक है कि भारत में अब तक किसान आत्महत्या कर रहे हैं? या दलितों पर अत्याचार अभी भी जारी है, इसलिए ‘सद्गति’ और ‘ठाकुर का कुआँ’ प्रासंगिक है? क्या ‘रंगभूमि’ इसलिए पढ़ने योग्य बनी हुई है कि किसानों की ज़मीन कारखाने बनाने के लिए या ‘विकास’ के लिए अभी...

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“एक बेहतर दुनिया की ओर”: मेधा पाटकर ने शुरू किया ग्रेटा थुनबर्ग से प्रेरित युवाओं का नया अभियान

-न्यूजलॉन्ड्री, ग्रेटा थुनबर्ग से प्रेरित हो कर अनेक युवाओं ने एक नया अभियान आरंभ किया- ‘एक बेहतर दुनिया की ओर’. प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने इस अभियान को जारी करते हुए देश-विदेश के युवाओं को याद दिलाया कि महात्मा गाँधी ने कहा था कि प्रकृति में इतने संसाधन तो हैं कि हर एक की ज़रूरतें पूरी हो सकें परन्तु इतने नहीं कि एक का भी लालच पूरा हो सके. सबके...

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