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दावोस के बहाने विषमता का सच-- कुमार प्रशांत

ऐसा कभी-कभार ही होता है कि सच खुद सामने अाकर झूठ का पर्दाफाश कर देता है! ऐसा ही हुअा था, जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक अोबामा अपने पद से विदा हो रहे थे. उन्होंने जाते-जाते कहा कि दुनिया की कुल संपत्ति का 50 प्रतिशत केवल 60 लोगों की मुट्ठी में है. अौर प्रकारांतर से यह भी कबूल कर लिया कि यह सच इतना टेढ़ा है कि इसे सीधा करना दुनिया...

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अर्थव्यवस्था की आगे की राह-- अरविन्द कुमार सिंह

कृषि और विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र में खराब प्रदर्शन के कारण चालू वित्तवर्ष में विकास दर की रफ्तार साढ़े छह प्रतिशत पर थमने की आशंका एक बार फिर बढ़ गई है। यह अनुमान केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने जताया है जिसके मुताबिक प्रतिव्यक्ति आय बढ़ने की गति अत्यंत धीमी है और साथ ही विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर घट कर छह साल के न्यूनतम स्तर (4.6 प्रतिशत) पर आ गई है।...

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हितों के टकराव और नैतिकता-- वरुण गांधी

साल 1990 की बात है. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के प्रमुख सचिव रहे बीजी देशमुख ने प्रधानमंत्री से पूछा था कि क्या वह सेवानिवृत्ति के बाद एक बड़ी निजी कंपनी में नौकरी कर सकते हैं- उन्होंने दशकों सरकारी नौकरी की थी और चाहते थे कि इजाजत मिल जाये, तो अब बाहर निकलकर कॉरपोरेट भूमिका निभाएं. दरअसल, हितों के टकराव के मुद्दे को स्वाभाविक रूप से भ्रष्टाचार से जोड़कर देखा जाना चाहिए....

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ठोस उपायों से ही बदलेगी तस्वीर - डॉ. भरत झुनझुनवाला

केंद्र सरकार का वित्तीय घाटा बढ़ रहा है। सरकार की आय कम हो और खर्च ज्यादा हो तो अंतर को पाटने के लिए सरकार बाजार से ऋण लेती है। इस ऋण को वित्तीय घाटा कहा जाता है। वित्तीय घाटे को अच्छा नहीं माना जाता, ठीक वैसे ही जैसे ऋण लेकर फाइव स्टार होटल में भोजन करने वाले को जिम्मेदार नहीं माना जाता है। विदेशी निवेशक सोचते हैं कि सरकार को...

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विकास के पैमाने और हकीकत-- राहुल लाल

हाल ही में अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेंटिंग एजेंसी ‘मूडीज' ने एक तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था के पक्ष में अपनी राय दी। इसे कसौटी माना जाए तो अब शायद रेटिंग एजेंसियों को नोटबंदी और जीएसटी पसंद आ रहे हैं। इन दोनों कदमों और बैंकों में फंसे कर्ज का बोझ कम करने की सरकारी कवायद के कारण मूडीज ने भारत की रेटिंग बढ़ाई। उसने भारत की रेटिंग में तेरह वर्षों के बाद सुधार...

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