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समस्या धारा 370 नहीं, समस्या है दो अलग-अलग सोच-- प्रेम कुमार

धारा 370 बोलते ही मस्तिष्क में उभर आता है जम्मू-कश्मीर, जुबान पर आ जाती है बीजेपी, नज़र आने लगते हैं सेकुलरवादी और टीवी पर झगड़ते बंटे हुए नेता. धारा 370 यानी जम्मू-कश्मीर के प्रताड़ित और विस्थापित हिंदू, धारा 370 से याद आने लगता है पाक अधिकृत कश्मीर, सियाचीन ग्लेशियर जैसे एकीकृत जम्मू-कश्मीर के कटे हुए हिस्से, जिन पर पड़ोसियों का कब्जा है. धारा 370 यानी कश्मीर विवाद में पाकिस्तान की...

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'दुनिया भर में पकने वाले भोजन का एक-तिहाई बेकार हो जाता है'

दुनिया में पकने वाले कुल भोजन का एक-तिहाई बेकार हो जाता है और उसे फेंक दिया जाता है। संयुक्त राष्ट्र पयार्वरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के इंटरनेशनल रिसोर्स पैनल के सह-अध्यक्ष जेनेज पोटोकनिक ने यह बात कही। पोटोकनिक हेलसिंकी में आयोजित पहले वर्ल्ड फोरम ऑफ सेकुलर इकोनॉमी(डब्ल्यूसीईएफ2017) के उद्घाटन समारोह के मौके पर बोल रहे थे। इस आयोजन में 90 देशों के लगभग 1700 विशेषज्ञ हिस्सा ले रहे हैं। पोटोकनिक ने कहा कि...

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जमीन पर छवि चमकदार नहीं- हरि जयसिंह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुआयामी शख्सियत के धनी हैं। आज जब वे प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल का एक साल पूरा कर रहे हैं तो उनके शुभचिंतक-प्रशंसक और उनके निंदक-आलोचक दोनों ही अलग-अलग दृष्टिकोणों से इसकी समीक्षा कर रहे हैं। सोनिया और राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने इस एक साल में यह तो स्पष्ट कर ही दिया है कि आर्थिक सुधारों की डगर पर वह विपक्ष के रूप...

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संविधान की प्रस्तावना से हटाए ‘सेकुलर, सोशलिस्ट’ शब्द!

नई दिल्ली। गणतंत्र दिवस पर प्रकाशित एक सरकारी विज्ञापन को लेकर विवाद छिड़ गया है। विज्ञापन में संविधान की प्रस्तावना दी गई है, लेकिन उसमें देश के नाम के साथ ‘सोशलिस्ट' यानी समाजवादी और ‘सेकुलर' यानी पंथनिरपेक्ष ये दो शब्द गायब हैं। हालांकि, सूचना और प्रसारण राज्‍य मंत्री राजवर्धन सिंह राठौर ने कहा कि विज्ञापन में प्रकाशित चित्र संविधान की प्रस्‍तावना के मूल संस्‍करण से लिया गया था। समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष...

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समाज और राजनीति के रिश्तों का संधान- अभय कुमार दुबे

राजनीतिशास्त्र के सर्वश्रेष्ठ विद्वान रजनी कोठारी के जीवन और कृतित्व के बारे में जाने बिना भारतीय राजनीति और समाज के आपसी रिश्तों के बारे जानना नामुमकिन है. इस लिहाज से उनका विमर्श भारतीय राजनीति की एक पूरी किताब की तरह है, जिसे पढ़ना हर समझदार व्यक्ति के लिए अनिवार्य है. 1969 में प्रकाशित अपनी सबसे मशहूर रचना ‘पॉलिटिक्स इन इंडिया' में उन्होंने दावा किया था कि भारतीय समाज के संदर्भ...

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