घाघरा (गुमला): गुमला के घाघरा थाना क्षेत्र में शिवराजपुर पंचायत स्थित बड़काडीह गांव के किसान बिरसाई उरांव (60) ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. वह आर्थिक तंगी से परेशान था. खेती का मौसम शुरू होते ही वह बैल खरीदने गुमला प्रखंड के पनसो बाजार गया था. पर जोड़ा बैल की कीमत अधिक होने के कारण खरीद नहीं पाया. जवान बेटी की शादी की भी चिंता थी. बिरसाई इस बार...
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मुआवजा देना किसानों की खुदकुशी का हल नहीं, योजनाएं अमल में लाएं: SC
नई दिल्ली.देशभर में किसानों की खुदकुशी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर की। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ मुआवजा देना परेशानी का हल नहीं है। सरकार को लोन के असर को कम करने की जरूरत है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट सरकार के खिलाफ नहीं है, किसान आत्महत्या का मसला रातोंरात नहीं सुलझाया जा सकता। गुरुवार को चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़...
More »कृषि को लाभकारी बनाना अपरिहार्य-- विवेक त्रिपाठी
भारत में किसान को अन्नदाता की उपाधि दी गई। पर आज वह निराश नजर आ रहा है। कृषि उपज का वाजिब मूल्य न मिलने से वह परेशान है। किसान को कर्ज लेना पड़ रहा है। वही उसके लिए जानलेवा साबित होता जा रहा है। किसानों की आत्महत्याओं में दिन-प्रतिदिन इजाफा हो रहा है। भारत में किसान आत्महत्या 1990 के बाद पैदा हुई स्थिति है, जिसमें प्रतिवर्ष दस हजार से...
More »भारतीय समाज के नए यथार्थ-- ज्योति सिडाना
वर्ष 2016 में सेंटर फॉर द स्टडी आॅफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) ने कोनराड एडेन्यूर स्टीफटुंग (केएएस) के साथ मिल कर ‘भारत में युवाओं की अभिवृत्ति' विषय पर एक अध्ययन किया। इस सर्वे में पंद्रह से चौंतीस वर्ष के भारतीय युवाओं (देश में युवा आबादी करीब पैंसठ फीसद है) से अनेक सवाल पूछे गए। आंकड़ों के अनुसार अस्सी फीसद युवा ज्यादा चिंतित या असुरक्षित महसूस करते हैं। उनमें चिंता के मुख्य...
More »अकथ कहानी खेत की-- राकेश दीवान
जून महीने के बीस दिनों में हुर्इं चालीस से अधिक किसानों की आत्महत्याओं का किसी के पास कोई जवाब नहीं है। किसान आंदोलन से निपटने के लिए सरकार को ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य' पर केवल तुअर, मूंग और उड़द खरीदने और आठ रुपए किलो में प्याज खरीदने और फिर भंडारण की कमी के चलते सड़ाने की तजवीज भर नजर आई। आज भी किसानी ‘अन-स्किल्ड' यानी अकुशल श्रम भर मानी जाती है...
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