ज्यादातर देशों में एक ओर जहां राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने के लिए मुफ्तखोरी को हथियार बनाती हैं, वहीं इसी दुनिया में स्विटजरलैंड जैसा भी एक देश है, जहां की जनता ने सरकार की इस पेशकश को ठुकरा दिया. दूसरी तरफ भारत में देखें तो राजनीतिक पार्टियां और सरकारें मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्तखोरी को बढ़ावा देनेवाली नीतियों को प्रश्रय देती रहती हैं भारत जैसे कल्याणकारी राज्य में सब्सिडी एक जरूरी...
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प्रकृति की ओर लौटते पंजाब के किसान
किसान हरजंट सिंह अपने गांव में निराले समझे जाते हैं. गांव का हर किसान उन्हें पहचानने का दावा करता है. हर कोई आपको उनके पास ले जाने का उत्साह दिखाता है. आख़िर उनमें क्या बात है जो दूसरों में नहीं? राय की कलां पंजाब के भटिंडा ज़िले में एक छोटा सा गांव है जहां हरजंट सिंह सदियों से चली आ रही परंपरागत तरीक़े से खेती करते हैं. उन्होंने अपने खेतों में कभी...
More »पशुप्रेम पर साझा सोच जरूरी-- पवन के वर्मा
हाल में पशुओं की संख्या कम करने के लिए उन्हें मारे जाने के सवाल पर मैं एक टीवी चैनल के पैनल डिस्कशन में शामिल था. पशुओं के हक के लिए मुखर रहनेवाली मेनका गांधी ने पशुओं को मारने की छूट देने को लेकर कैबिनेट साथी पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर पर सार्वजनिक तौर पर सवाल उठाया था. जावेड़कर ने कुछ राज्य सरकारों को ऐसे पशुओं को एक खास समयावधि तक मारने की...
More »छोटे व मझोले किसान अभी भी बैंक कर्ज को मोहताज
हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। कृषि कर्ज का आंकड़ा भले ही साढ़े आठ लाख करोड़ के लक्ष्य को पार कर गया हो लेकिन बड़ी संख्या में छोटे और मझोले किसान अब भी बैंक से ऋण पाने को मोहताज हैं। छोटे व मझोले किसानों की आबादी वैसे तो कुल किसानों की संख्या में 85 प्रतिशत है लेकिन कर्ज में इनकी हिस्सेदारी मात्र छह प्रतिशत है। इनमें से से बहुत से किसान अब...
More »समझ, संकल्प और इच्छाशक्ति का अकाल : योगेन्द्र यादव
वो गांव गये थे..दावा है कि गांव-गांव यात्रा किये हैं..खेत-खेत, आरी-डरेड़ा सब जगह घूमें। उन्हें ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि देश सूखे से बेहाल और सरकार दो साल के जश्न में निहाल है। उनका दावा है कि अभी दिल दिमाग जाग्रत है माने नहीं सूखा..भले ही खेत सूख गये हों..किसान बदहाल हो..आत्महत्या कर रहा हो। जी हां मैं बात कर रहा हूं स्वराज अभियान के योगेंद्र यादव और उनके साथियों की...
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