कुछ साल पहले की बात है। दिल्ली जाने पर मैं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के एक प्राध्यापक से मिलने गया था। चर्चा के दौरान मैंने कहा कि पांचवें-छठे वेतन आयोग ने प्रथम और द्वितीय श्रेणी के अफसरों-प्रोफेसरों के वेतन बहुत बढ़ाए हैं, जिससे समाज में गैरबराबरी और उपभोक्ता संस्कृति को बढ़ावा मिला है। उन्होंने तुरंत उसका बचाव करते हुए कहा कि वेतन बढ़ाना जरूरी है, नहीं तो विश्वविद्यालय में...
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सरकार के 10 साल के कार्यकाल में भारत की औसत आर्थिक वृद्धि दर 7.7 प्रतिशत रही : मनमोहन सिंह
नई दिल्ली। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के 10 साल के कार्यकाल में भारत की औसत आर्थिक वृद्धि दर बढ़कर 7.7 प्रतिशत रही जो इससे पिछले दशक में 6.2 प्रतिशत रही थी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगुवाई में सरकार की उपब्धियों को रेखांकित करते हुए आज जारी लेखा जोखा रिपोर्ट ‘प्रगति व विकास के 10 वर्ष’ में कहा गया है, ‘‘ संप्रग सरकार (2004-05 से 2013-14) के कार्यकाल में दो वैश्विक...
More »चीनी मिलों को ब्याज मुक्त कर्ज देने के प्रस्ताव को मंजूरी
उद्योग को राहत-सरकार पर भार 3,000 करोड़ रुपये बकाया है मिलों पर किसानों का भुगतान 900 करोड़ रुपये उपलब्ध हैं शुगर डेवलपमेंट फंड में 6,600 करोड़ का ब्याज मुक्त ऋण मिलेगा चीनी उद्योग को 2,750 रुपये का कुल भार पड़ेगा इस रियायत के चलते 5 वर्ष में कर्ज की अदायगी करनी होगी चीनी मिलों को वित्तीय संकट से जूझ रहे उद्योग को राहत देने के लिए सरकार...
More »विषमता का विकास और राजनीति- सुरेश पंडित
जनसत्ता 26 दिसंबर, 2013 : जैसे-जैसे सोलहवीं लोकसभा के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ़ रही है। कांग्रेस और भाजपा अपने अधिकतम भौतिक और मानवीय संसाधन झोंक कर इस चुनाव को किसी भी तरह जीत लेने के लिए कटिबद्ध दिखाई दे रही हैं। मतदाताओं को रिझाने के लिए उनके पास विकास के अलावा और कोई खास मुद्दा नहीं है और चूंकि इसे पहले भी कई बार आजमाया...
More »दीर्घकालीन राजनीति के तकाजे- पवन कुमार गुप्त
जनसत्ता 23 दिसंबर, 2013 : बहुत समय बाद राजनीति शब्द अपने सही अर्थ के नजदीक आया है। बहुत दिनों बाद आम आदमी में राजनीति से एक उम्मीद जगी है। बहुत-से लोग जो निराशहो गए थे, नए ढंग से सोचने लगे हैं। बात शायद 1944 की है। डॉ सुशीला नैयर ने गांधीजी से पूछा था कि आपने ऐसा क्या किया कि हिंदुस्तान की गिरी-पड़ी जनता उठ खड़ी हुई? गांधीजी का जवाब...
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