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बीमा विदेशीकरण की बेचैनी क्यों- अरविन्द मोहन

संसद का सत्र खत्म होते ही कई मामलों में अध्यादेश लाना केंद्र सरकार की बेचैनी को तो बताता ही है, हम सबसे इस बात की मांग भी करता है कि हम जानें कि हमारी सरकार किन सवालों पर इतना बेचैन होकर काम कर रही है। हमने देखा है कि देश भर में धर्म के नाम पर संघ परिवार से जुड़े लोगों और संगठनों ने जिस तरह से हंगामा मचाना शुरूकिया...

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विदेशी कंपनियां नहीं लाएंगी अच्छे दिन - डॉ. भरत झुनझुनवाला

वर्ष 2005 से 2010 के बीच देश की अर्थव्यवस्था 8.7 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी। अरबपतियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही थी। फिर भी जनता में असंतोष था, जिसका परिणाम संप्रग सरकार को 2014 के चुनाव में झेलना पड़ा। मोदी सरकार के सामने 2015 की चुनौती विकास को आम जनता तक पहुंचाने की है। हमारी वर्तमान विकास दर 5 से 6 प्रतिशत के बीच है।...

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कंपनी बड़ी या देश-- अरविन्द कुमार सेन

नोबेल पुरस्कार विजेता पॉल क्रुगमैन ने दो दशक पहले शोध पत्रिका हॉवर्ड बिजनेस रिव्यू में ‘देश एक कंपनी नहीं है' शीर्षक से शोध-पत्र लिखा था। यह शोध-पत्र उस दौर में प्रकाशित हुआ था, जब भुगतान संतुलन की बीमारी से दो-चार हो रही भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक संगठन की अगुआई में नवउदारवादी नीतियां थोपी जा रही थीं। हर तरफ आर्थिक सुधारों की मार्फत अर्थव्यवस्था को...

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योजना आयोग अभी भंग न करें : मांझी

पटना: बिहार ने योजना आयोग को जल्दबाजी में भंग करने का विरोध करते हुए इस मामले पर व्यापक चर्चा और निर्णय के लिए राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) की विशेष बैठक बुलाने की मांग की है. मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने नयी दिल्ली में आयोजित बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया कि इस मसले पर विचार-विमर्श और परिचर्चा के बिना जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लें. 12वीं पंचवर्षीय के मध्य...

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विकास की मशीनरी में कई पुर्जे ढीले - नंटू बनर्जी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात को भलीभांति समझते हैं कि अगर भारत को आठ से नौ फीसद की उच्च आर्थिक विकास दर अर्जित करना है तो यह केवल निर्माण क्षेत्र में सुधार के जरिए ही किया जा सकता है। आखिर गरीबी और युवाओं में बेरोजगारी की समस्याओं का निदान किए बिना कोई भी देश आगे नहीं बढ़ सकता। वर्ष 2012 के बाद से भारत की विशेष तौर पर जैसी धीमी...

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