अपने देश के 80 करोड़ गरीब लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा मुहैया करवाने की शुरुआत भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है। इस प्रकार की सामाजिक सुरक्षा वाली लोक कल्याणकारी योजना शुरू करना नैतिक रूप से सराहनीय है, लेकिन आर्थिक नजरिए से यह समस्या पैदा करने वाली भी है। इतनी बड़ी संख्या में लोगों के लिए शुरू की गई ऐसी योजना को निरंतर बनाए रखने और उसके लिए पैसा जुटाने के लिए ...
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अधिकारी भी मानते हैं आधे से ज्यादा अफसर हैं भ्रष्टाचार में लिप्त: शोध
सागर (मप्र)। देश में यह मानने वालों की तादाद में दिनों-दिन इजाफा होता दिख रहा है कि भ्रष्टाचार व्यवस्था की रग-रग में समा गया है, यहां तक कि इस व्यवस्था को चलाने वाले अधिकारी भी यह मानने लगे हैं कि देश के प्रशानिक ढांचे के आधे से ज्यादा अफसर भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। यह खुलासा उन सवालों के जवाबों से हुआ है, जो मप्र के डा. हरिसिंह गौर केन््रदीय विश्वविद्यालय के...
More »गंडामन त्रासदी की कड़ियां- अपूर्वानंद
जनसत्ता 25 जुलाई, 2013: मीना कुमारी पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और 120 के तहत मामला दर्ज किया गया है। यानी उन पर छपरा के गंडामन गांव के नवसृजित प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले तेईस बच्चों की, जो स्कूल का मध्याह्न भोजन खाने के बाद मारे गए, इरादतन हत्या और उनकी हत्या के लिए आपराधिक षड्यंत्र का आरोप है। वे अभी फरार हैं। आज या कल गिरफ्तार कर...
More »श्रम में खोता बचपन
बाल श्रम हमारे समय की एक दुखद सच्चई है. तरक्की के तमाम दावों के बावजूद आज हम उद्योग-धंधों से लेकर घर के भीतर तक पूरी दुनिया में किसी न किसी रूप में बाल श्रमिकों को देख सकते हैं. इसकी रोकथाम के लिए बेशक कई कानूनी प्रावधान किये गये हों, लेकिन पिछड़े क्या विकसित कहे जाने वाले समाजों तक में लाखों बच्चों का बचपन पेट की भूख मिटाने में दफन हो जाता है. वर्ल्ड...
More »क्या कागजी ही रहेगा बालश्रम कानून- किशोर
जनसत्ता 30 अप्रैल, 2013: मंत्रिमंडलीय समितिद्वारा बालश्रम (प्रतिबंधन एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 में संशोधन को मंजूरी दिए छह महीने से ज्यादा हो गए हैं, पर अभी तक यह संसद के दोनों सदनों में पास नहीं हो पाया है। इस संशोधन को राज्यसभा में पेश भी किया जा चुका है, पर मामला उससे आगे नहीं बड़ा है। इस अधिनियम में संशोधन के बाद चौदह वर्ष से कम आयु के बच्चों से...
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