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विद्रूप का शिक्षाशास्त्र-- शचीन्द्र आर्य

हम जिस दौर से गुजर रहे हैं, उसकी पहचान करने वाले कौन-कौन से औजार हमारे पास हैं! हमें एक बार फिर उन्हें दुरुस्त कर लेना होगा। हमें पता होना चाहिए कि हमारे साथ क्या हो रहा है! जो हो रहा है, वह इस पृथ्वी के किसी खास भौगोलिक खंड में एक नाम से पुकारे जाने वाले सामाजिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक निर्मिति के भीतर निर्मित होते एक देश में कैसे उसी आकार...

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स्वच्छता, समाज और सरकार-- सुभाष गताडे

एक सौ पांच साल की कुंवर बाई, जिन्होंने अपनी बकरियां बेच कर शौचालय का निर्माण कराया, ‘स्वच्छता दिवस' के अवसर पर दिल्ली में सम्मानित की जाएंगी। खबरों के मुताबिक कुंवर बाई ने कोटाभररी नामक अपने गांव (जिला राजनांदगांव) में स्त्रियों को खुले में शौच जाने की असुविधा से बचाने के लिए यह निर्माण कराया। बेशक कुंवर बाई का सरोकार व त्याग काबिले-तारीफ है और उनको स्वच्छता दूत नियुक्त किया जाना,...

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सामाजिक भेदभाव के लिए समाज-सरकार दोनों दोषी-- कुमार प्रदीप

कुमार प्रदीप. गुजरात में दलितों की पिटाई का मामला शांत हुआ ही है कि अब मध्य प्रदेश में ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं, जिनसे सामाजिक भेदभाव फिर सुर्खियों में है। मंडला में एक लड़की का नौकरी के सिलसिले में अपने घर से बाहर जाना समाज और गांव वालों को नागवार गुजरा तो उन्होंने उस होनहार युवती के परिवार को समाज से बहिष्कृत कर दिया। एक अन्य मामले में...

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पुलिस बल की अबलाएं-- अंजलि सिन्हा

पुलिस की भर्ती में शारीरिक सौष्ठव और दम-खम एक अनिवार्य कसौटी रहती है। भर्ती के बाद प्रशिक्षण में शारीरिक चुस्ती, अपराधी की पहचान और उसकी धर-पकड़ आदि के कौशल सिखाए जाते हैं। पर इसी के साथ-साथ पुलिस के प्रशिक्षण में सामाजिक आयाम, खासकर जेंडर संवेदनशीलता को भी शामिल किया जाना चाहिए।   छत्तीसगढ़ की चांदखुरी पुलिस एकेडमी, जो राजधानी रायपुर से मुश्किल से पच्चीस किलोमीटर दूर स्थित है, पिछले दिनों गलत कारणों...

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बेड़ियों से बेटियों की छलांग-- नासिरुद्दीन

हमारे समाज ने एक ‘अच्छी लड़की' के गुण तय कर रखे हैं. क्या हिंदू क्या मुसलमान, ‘अच्छी लड़की' के पैमाने के मामले में सभी धर्मों और जातियों में बिना किसी भेदभाव के एका है. लड़की का मामला है, इसलिए उसके अच्छे या बुरे होने का पैमाना कोई और ही तय करता है. कुछ धर्म/जाति के नाम पर तय होता है, कुछ घर-परिवार तय करते हैं, तो कुछ पंचायत और समाज...

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