-सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन द्वारा देश की राजधानी में आयोजित सम्मेलन अपने आप में एक ऐतिहासिक घड़ी थी. -सदियों से मैला उठाने वाला समाज अब टोकरी नहीं आवाज उठाना चाहता है, हाथ में झाड़ू नहीं किताब लेना चाहता है. -सरकार के झूठे वादों पर उम्मीद बांधने की बजाय अब इस समाज ने खुद मैलाप्रथा को खत्म करने की ठान ली है. आज भी कई लाख लोग अपने सर पर मैला उठाने को अभिशप्त हैं....
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पीपीपी से सावधान -योगेश दीवान
भूमंडीलकरण-उदारीकरण के इस काल में अचानक एनजीओ या सिविल सोसाइटी समूहों की बाढ़ आना और वह भी शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, परिवहन और भोजन के मुद्दों पर थोड़ा शक पैदा करता है. खासकर, डब्ल्यूएसएफ की उस पूरी प्रक्रिया के बाद जो कहता था- “एक और दुनिया संभव है.” WSF इस असंभव को संभव बनाया है पीपीपी यानी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के उस मॉडल ने, जो न सीधा निजीकरण है न पूंजीवाद और न...
More »घर नहीं पर कहे जाते अमीर
इंद्रपुरी [रोहतास, निज प्रतिनिधि]। 'न जीने की ताकत न आती है मौत, जिंदगानी तलवार दुधारी बाबू जी, पूरी पीढ़ी खप गई बयाज चुकान में, फिर भी कायम रहीं उधारी बाबू जी'। कविता किरण की यह पंक्तियां गुमनाम भुईया टोले की स्थिति को चरितार्थ कर रही है। दुधमी डिहरी भुईया टोली के अधिकांश महादलित गरीबी रेखा से ऊपर है। जबकि इनके पास न घर बनाने, न खेती करने की जमीन है।...
More »गुड़ दस हजार रुपये किलो!
रमनजीत सिंह, तलवंडी साबो । अंग्रेजी की पुरानी कहावत है 'ओल्ड इज गोल्ड' और यह कहावत यहां के गुड़ पर भी लागू होती है। दरअसल यह गुड़ कई गुणों का धनी है। सही मानें तो यह संजीवनी है। जी हां, यहां पंसारी की एक ऐसी दुकान है, जहां गुड़ बेशकीमती चीज की तरह ही बिकता है। आसपास के इलाकों में देसी दवाखाने चलाने वाले वैद्य इस पुराने गुड़ को विभिन्न दवाएं तैयार करने में...
More »गृहणियों ने उठाया पर्यावरण संरक्षण का बीड़ा
जमुई। पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कुछ कर गुजरने की तमन्ना से लवरेज जमुई की सैकड़ों महिलाओं ने पर्यावरण संरक्षण का अब बीड़ा उठाया है। यकीनन ये महिलाएं कुशल गृहणी के साथ-साथ सफल पर्यावरण संरक्षक दूत भी साबित हो रही है। परिणाम स्वरूप जमुई वन क्षेत्र में हरियाली में बढ़ोतरी हुई है और कई मौके पर जिले ने सूबे का मान बढ़ाया है। इन वन समिति की सदस्य महिलाओं ने जमुई वन क्षेत्र...
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