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विषमता का विकास- सुषमा वर्मा

जनसत्ता 17 फरवरी, 2014 : विश्व बैंक की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीना लेगार्ड ने हाल ही में यह रहस्योद्घाटन  किया कि भारत के अरबपतियों की दौलत पिछले पंद्रह बरस में बढ़ कर बारह गुना हो गई है। क्रिस्टीना के अनुसार, इन मुट्ठी भर अमीरों के पास इतना पैसा है जिससे पूरे देश की गरीबी को एक नहीं, दो बार मिटाया जा सकता है। लेगार्ड के इस बयान से पुष्टि होती है...

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गांव लौटने की मजबूरी - देविंदर शर्मा

बीते सात वर्षों में जिन किसानों ने खेती छोड़कर वैकल्पिक रोजगार अपना लिया था, आगामी कुछ महीनों में उनमें से डेढ़ करोड़ किसानों के थक-हारकर अपने गांव लौट आने की संभावना है। सामान्य स्थितियों में इतने बड़े स्तर पर किसानों के शहरों से गांव लौटने को समावेशी विकास का संकेत माना जाता। लेकिन अर्थशास्त्री इस यू-टर्न को आर्थिक मंदी का नतीजा बता रहे हैं। क्रिसिल ने भी अपनी रिपोर्ट में इसे...

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बदलाव की गुमनाम बयार- निराला

बिहार की राजधानी पटना में कुछ युवा चुपचाप दूसरों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. निराला की रिपोर्ट. अगर आप पटना के किसी शख्स से वहां के युवाओं के बारे में जानना चाहेंगे तो उसके मन में इन युवाओं की कई स्मृतियां मिलेंगी. मसलन सड़कछाप युवकों की टोलियां जो लहरिया कट (बाइक को इधर-उधर नचाकर चलाना) में हुड़दंग मचाते हुए राह चलते लोगों को...

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महान लोकतंत्र की सौतेली संतानें- अतुल चौरसिया

नर्मदा और टिहरी की जो वर्तमान त्रासदी है उत्तर प्रदेश का सोनभद्र जिला उससे आधी सदी पूर्व ही गुजर चुका है. लेकिन इसका दुर्भाग्य कि नर्मदा, टिहरी के मुकाबले विनाश के कई गुना ज्यादा करीब होने के बावजूद यह आज कहीं मुद्दा ही नहीं है. शायद इसलिए कि सोनभद्र के पास कोई मेधा पाटकर या सुंदरलाल बहुगुणा नहीं हैं. अतुल चौरसिया की रिपोर्ट. फोटो: शैलेंद्र पांडेय. सोनभद्र को देखकर पहली नजर...

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पानी रोका तो बने करोड़पति

महाराष्ट्र का एक गांव है हिवरे बाजार. यह अहमदनगर जिले में है. यह गांव एक दशक पहले तक बीरान हो गया था. लोग भाग कर शहरों में मजदूर बन गये थे. खेतों में दरारें पड़ गयीं थी. कई एकड़ जमीन के मालिक भी दिहाड़ी मजदूर बन गये थे. आज यह गांव फिर से आबाद है. 216 परिवार इस गांव में रह रहे हैं. उनमें से 51 करोड़पति हैं. आधे से अधिक...

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