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मजदूरी का पहिया -- जयराम शुक्ल

कुछ दिन पहले अपने मध्यप्रदेश के ओरछा से जाते हुए पन्ना से गुजरना हुआ। रास्ते में सामने से आती हुई एक के बाद एक बसों को देखकर चौंका। चौंकने की वजह थी, किसी में गुनौर से गुड़गांव तो किसी में पवई से रोहतक लिखा था। कई और बसों से भी वास्ता पड़ा, जिनमें हरियाणा और पंजाब के शहरों के नाम लिखे थे। पहले तो खयाल आया कि संभव है ये...

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भूख नहीं जानती सब्र-- संजीव पांडेय

दुष्यंत कुमार का शेर है : भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ। आजकल संसद में है जेरे-बहस ये मुद्दआ। शायर इसमें हुक्मरानों की खिल्ली उड़ा रहा है क्योंकि वह जानता है कि भूख सब्र नहीं जानती। इसके बावजूद हमारी व्यवस्था गरीबों का इम्तहान लेती रहती है। महज कुछ दिनों के अंतर पर ही झारखंड में भूख से तीन मौतें हुर्इं; उस राज्य में जो खनिज संसाधनों...

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राजस्थानी भोजन का जवाब नहीं-- बाबा मायाराम

धापु बाई ने राजस्थानी में लोकगीत की ऐसी तान छेड़ी कि सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। यह गीत राजस्थान में पाए जाने वाले खेजड़ी वृक्ष पर था। इसकी लोग पूजा करते हैं। फलियों की सब्जी बनती है, जिसे सांगरी कहते हैं। पत्तियां जानवर चरते हैं। यह राजस्थान का राज्य वृक्ष भी है।     इसी गीत से खाद्य विकल्प संगम की शुरूआत हुई। यह राजस्थान के बीकानेर के बज्जू में 6 से 9 अक्टूबर...

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झारखंड में ‘हिंदू’ डीलर ने रोका ‘ईसाइयों’ का राशन

रेहलदाग के शिवा भुइयां को दो महीने से राशन नहीं मिला है.  उनके पास राशन कार्ड है. जो इस बात का प्रमाण है कि वह जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) के विक्रेता (डीलर) से अपने परिवार के लिए आवंटित राशन ले सकते हैं. इसके बावजूद उनके गांव में राशन वितरण के लिए अधिकृत स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) ने उन्हें सितंबर महीने में राशन नहीं दिया क्योंकि वे ईसाई हैं और उन्होंने दुर्गा पूजा...

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कभी करती थी मजदूरी, अब लखपति बन गई सतवंती

बालाघाट। कहते हैं जहां चाह है वहां राह है...कुछ ऐसा ही कर दिखाया है बुदबुदा की एक महिला सतवंती ने। वह पहले मजदूरी करती थी लेकिन अब अपनी मेहनत से पूरे परिवार की तकदीर बदल दी। सतवंती ने रेशम की खेती शुरू कर दी है। जिस जमीन में वह सालभर मेहनत करके 30-35 हजार भी नहीं बचा पाती थी। अब सालाना 1 लाख रुपए मुनाफा कमा रही है। यह सब...

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