रांची जिले के ओरमांझी प्रखंड की चकला पंचायत के मुखिया बल्लू पाहन के लिए मुखिया बनना बहुत जरूरी नहीं था, उनका व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा है कि उनके गांव-पंचायत ही नहीं आसपास के गांव के लोग भी उन्हें मुखिया ही मानते हैं. वे झारखंड प्रदेश सरना पहरा समाज, मुत्रा पतरा के संरक्षक भी हैं और प्रखंड के मुखिया संघ के अध्यक्ष भी. मुखिया बनने से पहले भी वे अपने गांव का चक्कर लगा...
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जाति की जटिलताएं- योगेश अटल
जनसत्ता 19 अप्रैल, 2013: पिछले कुछ दिनोंसे यात्रा पर हूं और जिस शहर में गया वहां उत्सुकतापूर्वक मैंने हिंदी के अखबार पढेÞ, ताकि जान सकूं कि उनमें किस तरह की खबरें छपती हैं। किसी भी दिन कोई ऐसा अखबार नहीं मिला, जिसमें जाति के विषय में खबर न छपी हो। जाति का सम्मलेन, जाति की प्रतिभाओं का सम्मान, जाति के किसी समारोह में प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति, जबकि...
More »आरक्षण की उलझन- योगेश अटल
जनसत्ता 20 अप्रैल, 2013: अब आरक्षण से जुड़ा आज का प्रश्न। नए भारत का संविधान रचने वालों ने प्रारंभ में इसकी आवश्यकता को नहीं स्वीकारा। कहा जाता है कि खुद आंबेडकर इसके पक्ष में नहीं थे। बड़े संकोच के साथ उन्होंने इस सुझाव को सम्मिलित किया और वह भी केवल चुनिंदा समूहों के लिए और प्रारंभ के कुछ वर्षों के लिए। आरक्षण का प्रावधान उन जातियों और आदिवासी समूहों के...
More »बीपीएल के चक्कर से मुक्त सरकारी योजनाएं
बीपीएल सर्वेक्षण, सूची निर्माण और बीपीएल सूची में शामिल होने की होड़ का सच एक ऐसी तसवीर पेश करता है, जो सरकारी लाभ पाने की हमारे ग्रामीण समाज की जरूरत और भूख की दिशाहीनता दरसाता है. अव्वल तो बीपीएल सूची में शामिल लोगों को उनका वाजिब हक देने में तंत्र के हाथ-पांव फूल रहे हैं. इस सूची में शामिल गरीब लाभ से वंचित हैं. दूसरी ओर बड़ी संख्या में अमीर और सक्षम परिवार गरीबों...
More »सुधारों की दिशा और आम आदमी( पू्र्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के जन्मदिवस पर प्रभात खबर की विशेष प्र?
भारत में आर्थिक सुधारों को लागू किये जाने के 22 वर्ष बाद भी इस पर मंथन का दौर जारी है. पिछले दो दशकों के अनुभव हमें बता रहे हैं कि आर्थिक उदारीकरण के पैरोकारों ने जिस स्वर्णिम भविष्य का हमसे वादा किया था, वह सच्चाई से दूर, छल से भरा हुआ और भ्रामक था. इन वर्षों में आर्थिक उदारीकरण विकास के चमचमाते आंकड़ों पर सवार होकर हम तक जरूर आया,...
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