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अच्छा कानून दिखावटी अमल- सुभाष गताडे

जनसत्ता 7 मार्च, 2013: सोनिया गांधी की अगुआई में बनी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने पिछले दिनों अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 को अधिक सशक्त बनाने के मकसद से सरकार के सामने अपनी सिफारिशें पेश कीं। दलितों और आदिवासियों पर सामाजिक बहिष्कार लागू करना, साझे संसाधनों के उनके इस्तेमाल पर रोक लगाना, मंदिरों में उनके प्रवेश को प्रतिबंधित करना जैसे मसलों पर कानूनी कार्रवाई करने का सुझाव इन सिफारिशों...

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अब रबर स्टांप नहीं रहीं महिला जनप्रतिनिधि

बिहार में पंचायतों में 50 फीसदी आरक्षण के बाद विभित्र पदों पर महिलाएं जीत कर आयीं, तो यह कहा जा रहा था कि महिलाएं पंचायत नहीं चला सकती हैं. वह तो सिर्फ रबर स्टांप रहेंगी. काम तो उनके पति, बेटा, पिता, भाई या कोई पुरुष रिश्तेदार ही करेंगे, लेकिन महिला जनप्रतिनिधियों ने अपने हौसले नहीं खोये. पूर्व की महिला जनप्रप्रतिनिधि पुन: पंचायतों में चुन कर आने के बाद पांच सालों में सीखी गयी...

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क्या विरोध का ढंग बदल सकता है- गिरिराज किशोर

जनसत्ता 5 मार्च, 2013: इक्कीस-बाईस फरवरी का भारत-बंद लगभग सफल हुआ। उसके लिए श्रमिक संगठनों को बधाई। लेकिन इस महाबंद ने मन में कई सवाल उठा दिए। बंद होते रहते हैं। दो मुख्य तर्क इनके पीछे हैं। एक, मजदूरों या कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा, और दूसरा, अपने अधिकारों की शांतिपूर्ण और सामूहिक अभिव्यक्ति। दोनों बातें अपनी जगह सही हैं। मजदूर के अधिकार का संरक्षण होना जरूरी है। लेकिन असंगठित मजदूर...

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कन्या भू्रण हत्या के मामलों में त्वरित और कठोर कार्रवाई की जाए: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि प्रभावी तरीके से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण परीक्षण कानून लागू करने के लिए कन्या भू्रण हत्या के मामलों में लिप्त व्यक्तियों के खिलाफ त्वरित और कठोर कार्रवाई की जाए। इस कानून के तहत प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध है। न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने गैर सरकारी संगठन वालंटियर्स हेल्थ एसोसिएशन आॅफ पंजाब की...

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यह कैसी सौ फीसदी मंजूरी..!

उद्योगपतियों से लेकर प्रधानमंत्री तक एक ना एक रुप में वन और पर्यावरण मंत्रालय की आलोचना करते हैं कि वह ग्रीन-क्लीयरेंस के नाम पर औद्योगिक विकास और बुनियादी ढांचे के निर्माण के काम को रोक देता है। लेकिन बीते पाँच सालों में इस मंत्रालय ने जो निर्णय लिए हैं , उसके अध्ययन के आधार पर पर्यावरण के मुद्दे पर काम करने वाली एक संस्था के निष्कर्ष कुछ और ही इशारा करते हैं। संस्था की रिपोर्ट(देखें...

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