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मौत व कलंक के भय पर सेवा भारी

रांची [नीरज अंबष्ठ]। एड्स! जिसकी परिणति कलंक व निश्चित मौत। पूरे परिवार को बर्बाद कर देने वाली बीमारी। जाने-अनजाने में जिसे हो जाए, उसके अपने ही उससे दूर भागने लगते हैं। कहीं छूने-सटने से उसे भी.। बेघर तक किए जाते हैं। लेकिन एड्स पीड़ितों की सेवा और उनके लिए कुछ करने की उमंग को क्या कहेंगे? सिस्टर प्रमिला कुजूर को न तो मौत से डर है, और न ही कलंक से। एड्स पीड़ितों की सेवा की...

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मंदिर में भगदड़, 63 की मौत

प्रतापगढ़। श्रद्धालुओं का सैलाब पलक झपकते ही मातम के मेले में बदल गया। संत कृपालु महाराज के आश्रम पर प्रसाद, थाली-कंबल के लिए मची होड़ में इस कदर अव्यवस्था फैली कि भगदड़ मच गयी। चीख-पुकार के बीच लोग एक-दूसरे पर गिरने-पड़ने लगे, रौंदने लगे। देखते ही देखते मंदिर प्रांगण में 63 लाशें बिछ गयीं। मौत के शिकार लोगों में 37 तो बच्चे थे और 26 महिलाएं। मौका था कृपालु महाराज की पत्नी की श्राद्ध पर भंडारे...

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मौत लेकर आया रुमाल व थाली का लोभ

मनगढ़ (प्रतापगढ़)। कृपालु महाराज की ओर से एक थाली, एक रुमाल और बीस रुपये के एक नोट का लालच 63 लोगों के लिए गुरुवार को मौत का संदेश लेकर आया। सिर्फ इतना हासिल करने के लिए ही यहां सुबह से ही भीड़ जुटना शुरू हो गयी थी। लगभग दस बजे तक यह आलम था कि लोगों को संभालना मुश्किल हो रहा था। तेज धूप ने लोगों में बेचैनी बढ़ी और इससे लोहे के गेट पर...

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न आंगन और न बाड़ी, नाम आंगनबाड़ी

सासाराम न आंगन और न बाड़ी, फिर भी नाम है आंगनबाड़ी। यह स्थिति है जिले के एक हजार से अधिक आंगनबाड़ी केन्द्रों की। बच्चों को न बैठने की जगह है और न बिछाने का दरी। फिर भी लाखों रुपये प्रतिमाह आंगनबाड़ी केन्द्रों पर खर्च हो रहे हैं। बच्चों को कुपोषण से बचाने व शिक्षा से जोड़ने के लिए आईपीडीएस द्वारा चलाए जा रहे आंगनबाड़ी केन्द्रों पर 40 बच्चों को शिक्षा देने की व्यवस्था निर्धारित है।...

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इस हौसले का जवाब नहीं

गोरखपुर [संवाद सहयोगी]। उनका पैर नहीं है। मगर मनो बोझ लादे ठेला लेकर चलते हैं। शरीर चौथेपन में पहुंचा है मगर हौसला ऐसा कि जवान भी मात खा जायं। 65 वर्ष की उम्र है, यह काम नहीं आराम की उम्र है पर कुछ पूछिये तो मुस्कराते हुए कहते हैं अभी तो मैं जवान हूं। यह कहानी रामचंद्र चौहान की है। जिनका एक पैर नहीं है। एक पैर से ही ठेला खींचते हैं। वह भी...

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