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सिंदूर से पापड़, लुंगी से लेकर कोल्हापुरी चप्पल तक सब है ‘मेड इन चाइना’- रेम्या नैयर

नई दिल्ली: महिलाओं के सिंदूर से लेकर कोल्हापुरी चप्पलों तक, जिसने दशकों से महाराष्ट्र के इस विख्यात ज़िले को देश के फैशन मैप पर बनाये रखा है. बच्चों की किताबें जिन्हें बच्चे बिस्तर पर जाने के समय पढ़ते हैं. आज रात के खाने में आपको जो पापड़ दिया जाना हैं., यहां तक कि दक्षिण भारत की कलमकारी ड़िज़ाइन वाले कपड़े हों या बिहार का लोकप्रिय मधुबनी पैटर्न तक सबकुछ आपको आज...

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कम नहीं चुनाव आयोग की शक्तियां- नवीन चावला

भारत में जाति पर बहस राजनीतिक परिणामों की एक निर्धारक है। यह वर्ष 2019 के आम चुनाव सहित भारत में तमाम चुनावों की एक रोचक विशिष्टता है। यह ऐसी निर्धारक है कि मतदाताओं के बीच अति लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी चुनाव अभियान में अपनी जातिगत पहचान बतानी पड़ती है। उत्तर और केंद्रीय भारत की ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियों को किसी जाति या बिरादरी विशेष के लिए पहचाना जाता है।...

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आख़िर क्यों मनरेगा मज़दूरों को नहीं मिलती उचित मज़दूरी?- देवमाल्या नंदी

महात्मा गांधी रोज़गार गारंटी क़ानून (मनरेगा) वह क़ानून है जिसके अंतर्गत देश में सबसे अधिक व्यक्तियों को रोज़गार मिलता है. प्रत्येक वर्ष लगभग 8 करोड़ ग्रामीणों को इस क़ानून के अंतर्गत ग्रामीण विकास के कार्यों में रोज़गार मिलता है. मनरेगा के तहत काम करने वाले लोगों के लिए दैनिक मज़दूरी हर साल भारत सरकार द्वारा तय की जाती है ताकि महंगाई के साथ इनकी मज़दूरी भी बढ़े. केंद्र की मोदी सरकार ने...

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हरियाणा मेवात आकर सारे जुमले, सारे न्याय फेल हो जाते हैं- ज्योति यादव

मेवात: नीति आयोग ने पिछले साल विकास के लिए 101 ज़िले चुने थे जो देश के सबसे पिछड़े क्षेत्र थे जहां मूल भूत सुविधाओं का भारी अभाव था. हरियाणा का मेवात (अब नूह) इन सारे चुने गए ज़िलों में सबसे पिछड़ा था. आयोग के मुताबिक नक्सल प्रभावित एरिया बस्तर और गढ़चिरौली से भी ज़्यादा पिछड़ा है नूह. यानी देश का सबसे पिछड़ा एरिया. मेवात इलाके में लोकसभा चुनाव को लेकर उदासीनता...

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तीस लाख मतदाता चाहें भी तो इस चुनाव में मतदान नहीं कर सकते- आखिर क्यों, पढ़िए इस एलर्ट में !

‘वोट इंडिया वोट' के नारे के साथ एक सरकारी वेबसाइट पर लिखा है- ‘ मतदान प्रक्रिया में भाग लें, मतदाता होने पर गर्व महसूस करें.' लेकिन क्या कभी आपने सोचा कि भारत की एक बड़ी कामगार आबादी चाहे तो भी वोट नहीं कर सकती ? ऐसे कामगारों में एक नाम आता है ईंट भट्ठे के मजदूरों का ! इस बार ईंट भट्ठे पर काम करने वाले तकरीबन 30 लाख मजदूर अपने...

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