मडुवा की खेती कर खाद्य सुरक्षा के साथ पोषण सुरक्षा के लक्ष्य को भी हासिल किया जा सकता है. सीमांत किसानों के लिए यह आवश्यक है कि धान के अलावा वह वैकल्पिक खेती अवश्य करें. इसमें मडुवा, सरगुजा, कुरथी, गुंदली व दूसरे किस्म की फसल शामिल हैं, जो पानी की कम मात्र होने पर भी अच्छी उपज दे सकते हैं. वैकल्पिक खेती पर बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के जैवप्रोद्योगिकी विभाग के...
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श्वेत क्रांति ला रही है आधी आबादी- सुजीत कुमार
मिथक होते ही हैं टूटने के लिए. जिसके पास जज्बा हो वह मिथक को जरूर तोड़ता है. बिहार के खगड़िया की महिलाएं घर की दहलीज से बाहर निकल कर मिथक को तोड़ रही हैं. खगड़िया जिले में कोशी नदी और बाढ़ की विभीषिका एक दूसरे की पहचान रही हैं, लेकिन इसी इलाके की महिलाएं इस जिले की पहचान को बदल रही हैं. अब यहां कोशी की धारा के अलावा एक और...
More »अंटार्कटिका की पिघलती बर्फ के हैं अहम संदेश- डा एन के सिंह
दुनिया की सरकारों द्वारा पिघलते बर्फ की दास्तान जो भले ही मानवता के ‘सरवाइवल’ से जुड़ी है, नकार दी गयी है. शायद इसीलिए विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून 2014) का जो थीम है, वह आम नागरिकों को आगाह करने पर केंद्रित है. ‘रेज योर वॉइस, नॉट द सी-लेवल’ यानी हम आवाज उठायें, हम अपना आचरण बदलें, ताकि ग्लोबल वार्मिग कम हो और समुद्र का जलस्तर का बढ़ना बंद हो. मई 2014...
More »कौन रुके, कौन देखे और तब चले!- रंजन कुमार सिंह
पैर अभी सड़क पर पड़े ही थे कि सामने से आती गाड़ी को देख कर ठिठक गये. गाड़ी जितनी तेजी से चली आ रही थी, उतनी ही तेजी से चालक ने ब्रेक लगा दी. मैं समझ नहीं पा रहा था कि मुङो रुकना चाहिए या सड़क पार कर लेनी चाहिए, लेकिन गाड़ी तब तक रुकी रही, जब तक कि मैं सड़क पार नहीं कर गया. यह वाकया जाहिर तौर पर...
More »नये मध्यवर्ग का चरित्र- पवन के वर्मा
भारत का युवा गणतंत्र संकट में है, और भारतीय मध्य-वर्ग इसमें मुखर प्रतिभागी और हाशिये पर खड़ा दर्शक बना हुआ है. इस द्वैध के कई कारण हैं. इतिहास में किसी वर्ग के लिए यह असामान्य नहीं रहा है कि वह अपने अंदर कहीं बड़ी संभावना रखता हो, लेकिन आम तौर पर उससे बेखबर हो तथा उस बड़ी भूमिका को निभाने के लिए उसकी उतनी तैयारी भी न हो. सामाजिक रूपांतरण की...
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